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नैतिक शिक्षा ( लघुकथा )

" मम्मी , आज तो बहुत आसान टास्क मिला था मुझे स्कूल में ", मन्नू बोला ।
" अच्छा , क्या था , जरा मैं भी सुनूँ "।
मन्नू ने चहकते हुए कहा " घर की सबसे यूज़फुल और सबसे यूज़लेस चीज़ लिखना था "।
" सबसे यूज़फुल तो आप ही हो मम्मी "|
" और सबसे यूज़लेस चीज़ तो आपने कितनी बार बताया है ", दरवाजे पर स्तब्ध खड़े दादाजी अपनी उपयोगिता समझ गए थे ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 10:28pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 10:17pm

क्या बात है,लघुकथा का आपका अंदाज निराला है आ० विनय सर जी बधाई!

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 12:27pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी , आपका अनुमोदन मिलता है तो प्रसन्नता होती है..  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2015 at 9:35am

कमाल की रचना. बड़ी छोटी सी बात में ,बहुत बेहतर लघुकथा लिखी आदरणीय विनय जी. बहुत बहुत बधाई प्रस्तुति पर

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 9:32pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपका स्नेह है जो आपको इतना अच्छा लगता है । सादर आभार ..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 13, 2015 at 8:26pm

आ० विनय जी

साधारण सी बात में भे आपकी प्रस्तुति नया फ्लेवर डाल देतीहै ------दरवाजे पर स्तब्ध खड़े दादाजी अपनी उपयोगिता समझ गए थे । सारी कथा इसी पंक्ति पर टिकी है . सुन्दर प्रस्तुति .

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 1:48pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी , आपने सचमुच बहुत बेहतरीन सुझाव दिया है । दरअसल मैंने भी इसके अंत को कई बार बदला , फिर भी सन्तुष्ट नहीं था । सादर धन्यवाद , ऐसे ही कीमती सुझाव देते रहिये..

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 1:44pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया कान्ता रॉय जी , आप लोगों की टिप्पणी लिखने का उत्साह देती है..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 13, 2015 at 12:47pm

बहुत उम्दा रचना  आदरणीय  विनय कुमार  भाई जी...  हार्दिक बधाई स्वीकार करे ..
// और सबसे यूज़लेस चीज़ तो आपने कितनी बार बताया है //   के स्थान पर  कुछ ऐसा भी हो तो .( एक सुझाव मात्र ) .....

//और सबसे यूज़लेस चीज़... ये तो आप दिन में कितनी बार बोलती है ना मम्मा // 

Comment by kanta roy on June 13, 2015 at 12:41pm
ओह !! अनुपयोगिता में छुपा हुआ एक टीस ... मन को व्यथित कर जाती है । जिस माँ बाप के बिना कोई काम नहीं बनता था अचानक उनके लिए घर का कोना .... हाँ ,घर का कोना ही देते है बच्चे उनको ... इस बेहतरीन सार्थक लघुकथा के लिये बधाई आदरणीय विनय सर जी आपको

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