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ग़ज़ल :- तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की

मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन


तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की
हमें न अब सुनाइये कहानियाँ बहार की

फ़क़ीर की,न शाह की,न जोहरी ,सुनार की
यहाँ पे बात कर रहा हूँ मैं तो सिर्फ़ प्यार की

ज़रा सी देर बाद ये चराग़ बुझ ही जाएगा
हदें तमाम ख़त्म हो रही हैं इन्तिज़ार की

चढ़े दिमाग़ पर तो फिर कभी न वो उतर सके
मुझे तलाश है जनाब-ए-मन उसी ख़ुमार की

नदी किनारे झाड़ियों में छुप के बैठता है वो
सताए उसको भूक जब तलब लगे शिकार की

सुलूक इसके साथ जो भी जी में आए कीजिये
ग़ज़ल तुम्हारे सामने रखी है ख़ाकसार की

ख़ुशी से झूमते हो,झूम लो "समर" ज़रा सुनो
ख़बर तो कोई लाओ मेरे ग़म के रेगज़ार की

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by narendrasinh chauhan on June 4, 2015 at 6:26pm

जादा तो कुछ नहीं हमें है पता , पर आपकी ग़ज़ल खूब पसंद आती है

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 4, 2015 at 5:48pm

सुलूक इसके साथ जो भी जी में आए कीजिये
ग़ज़ल तुम्हारे सामने रखी है ख़ाकसार की

ख़ुशी से झूमते हो,झूम लो "समर" ज़रा सुनो
ख़बर तो कोई लाओ मेरे ग़म के रेगज़ार की--------------------वाह वाह, लाजवाब . बस कमाल है .

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 4, 2015 at 3:04pm

आदरणीय समर कबीर जी उम्दा शेर हुए है लेकिन आपने तो घुटने टेक दिये .....सुलूक इसके साथ जो भी जी में आए कीजिये
ग़ज़ल तुम्हारे सामने रखी है ख़ाकसार की ....हाहाहा ..सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2015 at 2:17pm

आ हा हा हा ..पहले तो  बहर पर ज़ूम गया ..जयशंकर प्रसाद की "हिमाद्री तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती" याक बयक कौंद गयी मन में ..
ऊपर से क्या कहन..ज़िंदाबाद जनाब 

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2015 at 1:22pm

जिंदाबाद जिंदाबाद

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