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ग़ज़ल :- तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की

मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन


तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की
हमें न अब सुनाइये कहानियाँ बहार की

फ़क़ीर की,न शाह की,न जोहरी ,सुनार की
यहाँ पे बात कर रहा हूँ मैं तो सिर्फ़ प्यार की

ज़रा सी देर बाद ये चराग़ बुझ ही जाएगा
हदें तमाम ख़त्म हो रही हैं इन्तिज़ार की

चढ़े दिमाग़ पर तो फिर कभी न वो उतर सके
मुझे तलाश है जनाब-ए-मन उसी ख़ुमार की

नदी किनारे झाड़ियों में छुप के बैठता है वो
सताए उसको भूक जब तलब लगे शिकार की

सुलूक इसके साथ जो भी जी में आए कीजिये
ग़ज़ल तुम्हारे सामने रखी है ख़ाकसार की

ख़ुशी से झूमते हो,झूम लो "समर" ज़रा सुनो
ख़बर तो कोई लाओ मेरे ग़म के रेगज़ार की

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on June 6, 2015 at 10:29am
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 6, 2015 at 10:26am
जनाब मोहन सेठी "इंतज़ार" जी,आदाब,शाइर कभी घुटने नहीं टेकता,अपने पाठकों की परीक्षा लेता है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 6, 2015 at 10:22am
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 6, 2015 at 10:20am
जनाब वीनस केसरी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 8:35pm

ज़रा सी देर बाद ये चराग़ बुझ ही जाएगा
हदें तमाम ख़त्म हो रही हैं इन्तिज़ार की,,,,,वाह ! एक और शानदार गजल आ.Samar kabeer जी ,,,अपने अनुज की दाद कुबुलें |

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 5, 2015 at 7:17pm

सुलूक इसके साथ जो भी जी में आए कीजिये
ग़ज़ल तुम्हारे सामने रखी है ख़ाकसार की    .....बहुत खूब बधाई!

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2015 at 3:59pm

वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 2:27pm

आदरणीय समर कबीर जी ..बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है,..सुलूक इसके साथ जो भी जी में आए कीजिये
ग़ज़ल तुम्हारे सामने रखी है ख़ाकसार की......बेहतरीन 
ख़ुशी से झूमते हो,झूम लो "समर" ज़रा सुनो
ख़बर तो कोई लाओ मेरे ग़म के रेगज़ार की...हर शेर उम्दा है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:32am

आदरणीय समर भाई , क्या बात है , एक और बेहतरीन गज़ल के रू बरू हुआ आपकी । दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 4, 2015 at 9:42pm

वाह आ० समर सर! सुन्दर गजल हुयी है,शेर दर शेर दाद कबूल फरमायें!

सादर!

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