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ग़ज़ल-नूर - नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

१२१२/११२२/१२१२/११२
नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ
मैं आदमी न हुआ और वो ख़ुदा न हुआ
.
.
सहर मलेगी अभी मुँह पे, रात के कालिख़
वो आफ़्ताब उछालूँगा जो हवा न हुआ. 
.
अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ
वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.
.
ये कायनात कहाँ और ऐ बशर तू कहाँ
बड़ा समझने से ख़ुद को कोई बड़ा न हुआ,
.
किसी चिराग़ सा मैं और आफ़्ताब सा वो
ये उस की सादा-दिली फिर भी आईना न हुआ. 
.
चलेगा साथ सफ़र में ये ज़िद रही उसकी
जो देखी धूप कड़ी, उस का हौसला न हुआ.    
.
करेगा ख़ुद पे भरोसा तो साथ देगा रब   
बग़ैर अज़्म, कहीं कोई मोजज़ा न हुआ.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 10, 2015 at 12:54pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर.
आप से दाद पा कर आनंदित हूँ ..
कार्यस्थल पर व्यस्तता के कारण समय कम दे पा रहा हूँ..
क्षमा निवेदित है ..
आभार  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2015 at 11:48pm

आदरणीय नीलेश भाई, मुग्ध हूँ.

अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ
वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.

चलेगा साथ सफ़र में ये ज़िद रही उसकी
जो देखी धूप कड़ी, उस का हौसला न हुआ.

ग़ज़ब !
हाँ, मतला जो हुआ है, बस हो गया है और यह सहेज के रखने के योग्य है.
बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:16pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:16pm

शुक्रिया आ. वीनस जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:15pm

शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:15pm

शुक्रिया आ. महर्षि जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:15pm

शुक्रिया आ. डॉ गोपाल नारायण जी  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:14pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:14pm

शुक्रिया आ. श्याम नारायण जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:15am

अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ 
वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.
.बहुत सुन्दर !! हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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