दरमियाँ के फासले जाने लगेंगे एक दिन,
आते-आते याद हम आने लगेंगे एक दिन।
जगते-सोते ख्वाब हम सहेजते तेरे अभी
अब तेरे ख्वाब हम आने लगेंगे एक दिन।
अपने दीये जले घर तेरे,ऐसा लगता है,
दीप तेरे अपने घर छाने लगेंगे एक दिन।
तेरी हीधुन को सहेजे गीत पिरोये मैंने जी,
मेरे नगमे तेरे लब आने लगेंगे एक दिन।
चाहतें अपनी मुकम्मल नाम तेरे हो गयीं,
हम तुझको लगताअबभाने लगेंगे एक दिन।
मांगता हूँ जिंदगी,तो भाव खाती जिंदगी,
जिंदगी से भाव हम खाने लगेंगे एक दिन।
शिद्दत-ओ-शौक से आशियाँ अपना सजा,
मुश्किले सब छोड़ के जाने लगेंगे एक दिन
ताने तेरे कितने भी दो,मुझको नहीं सताते,
देख लेना तुझको सच ताने लगेंगे एक दिन
तेरे पते रहे बदलते ,कितने ख़त मैंने लिखे
अबके पते मेरे ख़त जाने लगेंगे एक दिन।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन
Comment
आ॰ समरजी, मिश्राजी, प्राचीजी व सौरभजी !आपके स्नेह से तर हो गया मेरा अंतर। आप सबकी सलाह पर निश्चित तौर पर गौर करूँगा, सादर।
अब आप ग़ज़ल के विधान पर एकाग्र होइये, भाई.
अबतक आपने अवश्य समझ लिया होगा कि ग़ज़ल विधा की मूलभूत आवश्यकताएँ क्या हैं. आप अपनी रचनाओं पर वापस भी आया कीजिये. देखिये, सुधीजनों ने उन पर क्या कहा है. या, जो नहीं कहा है वह क्या हो सकता है.
शुभेच्छाएँ
मन की सुकोअल भावनाओं को जस का तस शब्द देने का प्रयास हुआ है आ० मनन जी
शिल्प पर कुछ और समय अपेक्षित अवश्य ही है..
प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारिये
वाह! बहुत ही सुन्दर गीत! बधाई आ० मनन जी!इन पंक्तियों में लय बिगड़ती लग रही है देख लीजिये>>
ताने तेरे कितने भी दो,मुझको नहीं सताते,
ताने तुझको देखना सब सच लगेंगे एक दिन
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