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परित्यक्ता लघुकथा

"रामकली कँहा जा रही है ? "
"अरे !जिज्जी कहूँ नई इताइ आ जा र्इ हो।"
"काय री रामकली जो माथों सुनो तोहरी बिंदी कहा गई री ?और मांग भी सुनी है?"
"अरे सपरो हतो सो गिर गई हुहे"।
" हे राम !जा जिज्जी तो और अबै सबरो भेद खुल जातो ।हम तो पेंशन लाने जो सब कर रहे हते।का होत है दो पल सुहाग छुड़ा के सरकार से पैसा लेबे में।"
और रामकली पति के साथ होते हुए भी सरकारी परित्यक्ता की पेंशन लेने चली जाती है।

बबिता चौबे शक्ति
मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by babita choubey shakti on May 29, 2015 at 1:58pm

परम् आदरणीय डॉ प्राची जी सौरभ पाण्डे जी वीर जी सादर नमन बास्तव में विधवा पेंशन ही है पर परित्यक्ता सहायता राशि और जॉब में कुछ आरक्षण है. उसके लिये मुझे शब्द नही मिल रहे थे सो क्षमा चाहूंगी पर मैने अपनी आँखों से ऐसा होते हुये देखा इसलिये मैने लिख दिया महोदय जी लेते तो दोनों है सरकारी योजनाओं का गलत तरीके से फायदा
आप सभी का आभार व् धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 10:24pm

अच्छी लघु कथा कही है आ० बबिता जी 

नैतिक पतन का ये स्वरुप भी.....

आपने बहुत सुन्दरता से विषयवस्तु को प्रस्तुत किया है, मेरा संशय भी परित्यक्ताओं को मिलने वाली सरकारी पेंशन पर ही है.

प्रस्तुत लघुकथा पर हार्दिक बधाई प्रेषित है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 7:04pm

कथा का सार तो सन्न कर देता है. आज के समाज के नैतिक पतन की पराकाष्ठा को सुन्दरता से शब्दबद्ध किया गया है.

वैसे आदरणीय नीलेश जी ने सही सवाल उठाया है, जो अब भी अनुत्तरित है, आदरणीया बबिताजी, कि, पेंशन विधवाओं को मिलता है या परित्यक्ताओं को भी ?

इस लघुकथा के विन्यास केलिए शुभकामनाएँ ..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 28, 2015 at 10:54am

आदरणीय बबिता चौबे जी सुन्दर कथा !  सादर बधाई .....

// दो पल सुहाग छुड़ा के सरकार से पैसा लेबे में //  कथा में ये पंक्ति आज के समाज में नैतिक मूल्य की और भी इशारा करता है !

Comment by babita choubey shakti on May 27, 2015 at 11:23pm
आदरणीय मिथलेश जी शकूर जी नीलेश जी हार्दिक आभार व् धन्यबाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:43pm

अच्छी लघुकथा हुई है बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2015 at 8:10pm

अच्छी लघुकथा है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 27, 2015 at 12:47pm

अच्छी कहानी है ..
परित्यक्ता पेंशन है या विधवा पेंशन ?

Comment by babita choubey shakti on May 27, 2015 at 12:08pm
आदरणीय डॉ रामगोपाल जी धन्यबाद कथा पसंद करने के लिये
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2015 at 11:41am

सरकारी  मशीनरी में यह भी संभव है . अच्छी कथा .

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