For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुलदस्ता - .......३ मुक्तक

गुलदस्ता - ........३ मुक्तक

हर लम्हा ....


जब भी  ये  दिल उदास होता है
जाने कौन  आस  पास  होता है
मेरी तन्हाई को  साँसे देने वाले
हर लम्हा तेरा अहसास होता है

..............................................

तमाम सांसें .....

आपकी हर अदा  को  सलाम करते हैं
अपनी मुहब्बत .आपके नाम करते हैं
वजह बन गए हैं जो हमारे ख़्वाबों की
तमाम सांसें .हम उनके नाम करते हैं

................................................

उनके लबों पे ……..


आज उन के लबों पे हमारा भी नाम आयाहै
साथ बादे सबा के  इक हसीं पैगाम आया है
देख  आसमाँ के महताब अब ख़फा न होना
आज हम से मिलने  ज़मीं का चाँद आया है


सुशीलसरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 29, 2015 at 3:14pm

आदरणीया डॉ.प्राची सिंह जी क्षमा कह कर मुझे शर्मिंदा न करें . कभी कभी अनजाने में ऐसा हो जाता है . आपका हार्दिक आभर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 9:14pm

बहुत भूल हुई भाई सुशील जी...... क्षमा क्षमा. 

आपका नाम अभी सही कर दे रही हूँ 

Comment by Sushil Sarna on May 28, 2015 at 3:27pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया एवं सुझाव का हार्दिक आभार। मेरा नाम सुशील सरना है न की विष्णु सरना  … हा हा हा। 

Comment by Sushil Sarna on May 28, 2015 at 3:24pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर   जी प्रस्तुत मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।  

Comment by Sushil Sarna on May 28, 2015 at 3:23pm

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi" जी प्रस्तुत मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।  आपने   याद दिलाया तो हमें याद आया   … लेकिन मन जो भाव आते गए कागज़ पर उतार दिया  .... बाकी इसे संयोग मात्र ही कह सकते हैं   … दुसरे नाम और पैगाम के साथ चाँद कैसे आया  … बात तो आपकी १००% खरी है सर क्या करें भावों को लिखते लिखते न जाने कैसे मुक्तक में चाँद लिखना अच्छा लगा हमने लिख दिया और वो भावों से मेल खा गया अब चाहे वो काफिये से मेल नहीं खा रहा था फिर भी अच्छा लग रहा था।  खैर कोई बात नहीं आगे से आपके सुझाव का अवश्य ध्यान रखेंगे। आपके स्नेहात्मक सुझाव का हार्दिक आभार सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 10:34am

आ० सुशील सरना जी 

सहज अभिव्यक्ति...सुन्दर मुक्तक प्रयास

आ० गणेश जी की कहीं दोनों बातों से पूर्णतः सहमत हूँ, आप भी संज्ञान में अवश्य ही लें..

हार्दिक शुभकामनाएं इस प्रयास पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:37pm

बहुत सुन्दर मुक्तक हुए है 

हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 11:14am

सुन्दर मुक्तक हुए है! आ० sushil sarna जी! हार्दिक बधाई!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 2:43pm

//जब भी  ये  दिल उदास होता है 
जाने कौन  आस  पास  होता है //

गुलजार साहब द्वारा लिखा फ़िल्म सीमा का यह गीत बहुत ही पॉपुलर है, यदि आप तक यह गीत नहीं पहुंचा तो इसके लिए आप दोषी हैं ..हा हा हा हा हा

अंतिम मुक्तक में नाम, पैगाम के साथ चाँद काफिया कैसे ?
बहरहाल इस प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय सरना साहब. 

Comment by Sushil Sarna on May 26, 2015 at 12:53pm

आदरणीय   Kewal Prasad जी मुक्तक पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service