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ग़ज़ल बतौर-ए-ख़ास ओबीओ की नज़्र

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

कहूँ,ओबीओ से में क्या चाहता हूँ
ग़ज़ल की सुहानी फ़ज़ा चाहता हूँ

यही आरज़ू लेके आया हूँ यारो
मैं इस मंच को लूटना चाहता हूँ

ये समझो मुझे कुछ भी आता नहीं है
मैं सब कुछ यहाँ सीखना चाहता हूँ

जुड़े भाई'मिथिलेश' ही सब से पहले 
मैं उनसे ग़ज़ल की अदा चाहता हूँ

ये'गिरिराज' तो मेरे हम अस्र ठहरे
मैं उनसे भी लेना दुआ चाहता हूँ

बहुत कुछ मुझे उनसे करना है साझा
मैं 'सौरभ' से इक दिन मिला चाहता हूँ

लिसानी हों या हों निकात-ए-अरूज़ी
मैं 'वीनस' से चर्चा किया चाहता हूँ

ज़हानत मुझे 'नूर' की भा गई है
मैं साथ उनसे अपना सदा चाहता हूँ

बहुत है महब्बत मुझे ओबीओ से
यही 'बाग़ी' जी से कहा चाहता हूँ

मुलायम है लहजा बहुत 'योग' जी का
मैं उनसे ज़रा हौसला चाहता हूँ

खुले दिल के हैं भाई 'राणा' यक़ीनन
ख़ुदा से मैं उनका भला चाहता हूँ

है बारीक बीं मेरी 'राजेश' बहना
मैं उनकी नज़र माँगना चाहता हूँ

उमीदें बहुत हैं मुझे 'शिज्जु' जी से
मैं ऊँचा उन्हें देखना चाहता हूँ

'दिनेश' अपने मतलब से रखते हैं मतलब
मैं तारीफ़ उनकी किया चाहता हूँ

बना लूँ तुम्हें 'जान' जी ,जान अपनी
इजाज़त तुम्हारी ज़रा चाहता हूँ

'विजय' जी हों या मेरे 'गोपाल' दादा
मैं दोनों से अह्द-ए-वफ़ा चाहता हूँ

'लडीवाला' जी तो ये ख़ुद कह चुके हैं
"बदलना समय को ज़रा चाहता हूँ"

दुबे जी 'मुसाफ़िर'जी ,'सेठी' जी आओ
सितारों से आगे बढ़ा चाहता हूँ

मिरे पास ग़ज़लों का है इक ख़ज़ाना
उसी को यहाँ बाँटना चाहता हूँ

महब्बत महब्बत महब्बत महब्बत
मैं तुमसे भला और क्या चाहता हूँ

अगर कोई गाहक मिले तो बताना
"समर" को मैं अब बेचना चाहता हूँ


"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1982

Comment

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Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 10:38am
जनाब नादिर ख़ान जी,आदाब,आपकी असीम मुहब्बतों का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ,सीखने सिखाने के लिये उस्तादी शागिर्दी की ज़रुरत नहीं ,हम एक दूसरे के मित्र बन कर भी ये काम कर सकते हैं ।
Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 10:29am
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

"जोत से जोत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो"
Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 10:26am
जनाब "जान" गोरखपुरी जी,आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,ऐसे ही स्नेह बनाए रखियेगा ।
Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 10:21am
आली जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी,आदाब,दर अस्ल इज़हार-ए-मुहब्बत करने का इससे बहतर तरीक़ा मुझे नहीं सूझा ,मंच के सभी लोग एक दूसरे से प्रेम करते हैं यह बहुत अच्छी बात है ,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
चूँकि मेरा हिंदी का ज्ञान कम है इसलिए मैं 'सिसृक्षा' का मतलब नहीं समझ सका ,कृपया बताने का कष्ट करें ।
Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 10:12am
जनाब लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी,आदाब,सीखने सिखाने का क्रम तो चलता ही रहेगा,मैं आपको अपने मित्रों में शुमार करता हूँ ,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,बहुत बहुत शुक्रिया,ऐसे ही स्नेह बनाए रखियेगा ।
Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 11:58pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,वैसे भाई बहनों से माँगते हुए अच्छे नहीं लगते ,एक ही चीज़ आपसे माँगना चाहूँगा कि इसी तरह अपना स्नेह बनाए रखियेगा ।

"कहो ,पौत्र की अब तबीअत है कैसी
ख़ुदा से मैं उसकी शिफ़ा चाहता हूँ"
Comment by नादिर ख़ान on May 25, 2015 at 11:45pm

खूबसूरत गज़ल के लिए आदरणीय समर साहब दिली मुबारकबाद ...

आपकी ख़िदमत में अर्ज़ किया है ....

बना लीजिये मुझको शागिर्द अपना 

मै भी आपसे सीखना चाहता हूँ ....

खजाना जो है आपके पास में सर 

उसे प्यार से लूटना चाहता हूँ 

सादर...

Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 11:20pm
जनाब विजय निकोरे जी,आदाब,आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 11:19pm
जनाब विनय कुमार सिंह जी,आदाब,आप तो मेरे दिल में पहले से ही बसे हुए हैं,बस ऐसे ही स्नेह बनाए रखियेगा ,बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 11:07pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,आमीन ! आपकी मुहब्बतों पर ऐसी 100 ग़ज़लें क़ुर्बान ,ऐसे ही स्नेह बनाए रखियेगा ,बहुत बहुत शुक्रिया ।

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