For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.

गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा

आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.
.
जो लज़्ज़तें थीं हार में जाती रहीं सभी  
सब जीतने की लत ने सिकंदर बना दिया.
.
नाज़ुक से उसने हाथ रखे धडकनों पे जब  
तपता सा रेगज़ार समुन्दर बना दिया.
.
एहसास सब समेट लिए रुख्सती के वक़्त
दीवानगी-ए-शौक़ ने शायर बना दिया. 
.
जो उस की राह पे चले मंज़िल उन्हें मिले  
बाक़ी तो बस सफ़र ही मुकद्दर बना दिया.
.
उसने हमें नवाज़ दिया ख़ुद उसी का घर 
हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.
.
कैसे मुजस्मासाज़ तुझे शुक्रिया कहूँ 
कंकर था मैं तराश के शंकर बना दिया.
.
निलेश "नूर" 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1374

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 27, 2015 at 11:28am

शुक्रिया सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 12:05am

सराहूँ सियाराम या सराहूँ सीताराम को !..

ग़ज़ल वाह ! परिचर्चा वाह-वाह ! ..

यह अवश्य है कि अर्कान को कहने का ढंग मनमाना नहीं होता इसके प्रति आश्वस्त होलें. अरुज़ से सम्बन्धित बाद बाकी आपको भी समझ में आया होगा. यह अवश्य है कि अश’आर के निहितार्थ कमाल हुए हैं.
दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय नीलेश भाई.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 18, 2015 at 3:59pm

जी अवश्य...
इस विषय पर कोई पठन सामग्री हो  तो उपलब्ध करवाइए. इससे लाभान्वित होना कौन नहीं चाहेगा.  
सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 18, 2015 at 3:42pm

फिर तो आप इस बहर के मूल वजन को जानिये और  ज़िहाफ के समंदर में कूदिये और थोड़ा सा समझिये कि कैसे और कहाँ अर्कान टूट सकते हैं ...

हाँ आपको एक बात स्पष्ट कर दूं कि अरकान निश्चित सेट में ही नहीं टूटता ....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2015 at 10:54am

आदरणीय वीनस जी 
आपने जो अरकान बताए हैं वो यूँ हुए 
गागाल / गालगाल / लगागाल  / गालगा यानी 
आवार/ गी ने मुझ को / क़लन्दर /बना दिया ..या 
जो उस की/ राह पे च/ ले मंज़िल उ/ न्हें मिले
 ...इसे लय में गुनगुनाने पर बीच के 11 के पहले और बाद में एक नेचरल पॉज आता है.एक ज़ोर आता है    
आवारगी ने मुझ /को  क़/लन्दर बना दिया ..  या 
जो उस की राह पे /चले /मंज़िल उन्हें मिले
 गागाल / गालगाल / लगागाल  / गालगा और 
गागा लगा लगा/लल / गागा लगा लगा ...
गुनगुना के देखिये ..आप स्वयं आश्वस्त हो जाएँगे  
फिर अरकान से लय सिर्फ इसीलिए बनती है कि निश्चित सेट ..निश्चित अंतराल में रिपीट होता है 
 गागाल / गालगाल / लगागाल  / गालगा ...इसमें कोई अरकान एक जैसा नहीं है 
गागा लगा लगा (एक सेट)/ लल (ल के दो सेट)/ गागा लगा लगा (दूसरा सेट)...

Comment by वीनस केसरी on May 17, 2015 at 12:24am

निलेश भाई एक ही बात को बार बार कहने का कोई मतलब नहीं बनता ...
और ये बात भी सही है कि ग़ज़ल में क्या कहन और भाव रखना है इसका अंतिम निर्णय आपको ही लेना है ....

हवाला दे कर ही अदब की दुनिया में बात राखी जाती है मगर "मारो कहीं लगे वहीं" के लिए "मारो घुटना फूटे आँख" का हवाला देना तो उचित न होगा न ...

अथ में तो आप ही निश्चित कीजिये, मुझे को लगा मैंने वैसी आलोचना/समीक्षा की ..

मगर कहन और भाव की बात अलग है
शाइर लफ्ज़ और बहर के आरकान को लेकर आपका हठ उचित नहीं है ...

और हाँ ..
जो तीन अशआर आपने कोट किये हैं उन तीनों के दोनों मिसरों में खूब रब्त है ... कोई दो लख्त नहीं है

Comment by shree suneel on May 16, 2015 at 6:20pm
नाज़ुक से उसने हाथ रखे धडकनों पे जब
तपता सा रेगज़ार समुन्दर बना दिया./
बहुत ख़ूब आदरणीय निलेश जी. अच्छी ग़ज़ल. बधाईयाँ आपको.
साथ ही ग़ज़ल पे विस्तृत चर्चा ने भी समृद्ध किया. जो लिंक दिया आपने वो भी उपयोगी है. इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 16, 2015 at 2:57pm

NICEE MTIRA

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2015 at 12:48pm

धन्यवाद आ. वीनस जी ...
मेरा स्पष्ट मत है कि 12/22/11 आदि उस लय का गणीतिय एक्सप्रेशन मात्र है जिसमे कोई भी रचना गुनगुनाई जाती है. ये तर्कसंगत भी है. तबले की..ताली और ख़ाली से लय बनती है ...
मानक तो २२१/१२२ आदि भी नहीं है ..फिर तो फाइलातुन ..फउलुन आदि में गिनना ही श्रेष्ठ होगा ...
धडकनों में बसाना तो संभव है ...यदि विशुद्ध भौतिक स्वरूप पर चर्चा हो तो 95% शायरी ख़त्म हो जाएगी क्यूँ कि शायरी अहसास का नाम है. ये पोएटिक लिबर्टी है ...
मगर धड़कन पे हाँथ नहीं रखा जा सकता--- जो किया नहीं जा सकता वही सब सोचने को शायद कविता कहते हैं. जहाँ न पहुँचे रवि वहां पहुँचे कवि . "जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है" 
क्या सचमुच कभी आँखों से खून टपकते देखा है? 
और तो कौन है जो मुझको तसल्ली देता
हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर..जांनिसार अख्तर  ."क्या यहाँ दिल पे हाथ रखा ,,वो भी बातों ने" बातों के हाथ उग आए क्या ?? मगर बस धड़कन पे हाँथ नहीं रखा जा सकता 

शायर और शाएर पर मैं बहुत रिजिड नहीं हूँ लेकिन 'ब्राह्मण' का  बिरहमन जायज़ होना भी खलता है . वैसे भी शायर और शाइर दोनों गलत हैं. शाएर सही उच्चारण है क्यूँ कि यहाँ ऐन के ऊपर वाला हिस्सा या हमज़ा जैसा चिन्ह इस्तेमाल होता  है  जो इ की ध्वनि कतई नहीं है.

कंकर और शंकर में छुपे भाव को पकड़ने में आप चूक रहे हैं शायद. कॉण्ट्राडिक्शन हमेशा अणु और ब्रह्माण्ड में होगा. कतरे और समुन्दर में होगा ..चट्टान और पहाड़ में नहीं होगा.
ईश्वर के हम पर इतने उपकार हैं कि जिनका शुक्रिया नहीं किया जा सकता. मानव योनी में जन्म से लेकिन बुद्धि देने तक और जीवन में सफल बनाने तक. ईश्वर ही वो शिल्पी या मुजस्मासाज़ है जो मुझ जैसे कंकर से भी छोटे (उसकी तुलना में) कण को इतना तराश रहा है, स्किल दे रहा है, पॉलिश कर रहा है कि मैं संसार में कुछ सकारात्मक कर पा रहा हूँ.
शायद आपने ये फीलिंग मिस कर दी है इस शेर तक आते आते.     
उर्दू शायरी में महबूबा भी पुल्लिंग स्वरूप में कही जाती है तो क्या ये मान लेना चाहिए कि यहाँ सब अप्राकृतिक है??
और फिर जो किसी ने नहीं कहा वो मैं भी न कहूँ या जो कहा गया है सिर्फ वही कहूँ..ये तो उचित नहीं है. तमाम बातें लाखों बार कही गयी हैं..बस आप उन्हें क्या शब्द देते हैं वो महत्वपूर्ण है. 

मतले के दोनों मिसरों में रब्त न होने की बात पर निवेदित है कि शेर तीन प्रकार के होते हैं 
1) पहला मिसरा दूसरे से सीधा जुड़ा हो ..एक दूसरे के बिना दोनों अधूरे हो 
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन 
ख़ाक हो जाएँगे हम उन को खबर होने तक .. (यहाँ पहला मिसरा दूसरे के बिना अधूरा है) 
.
2) दोनों मिसरे जुड़े हो लेकिन अपनी अपनी बात पूरी करते हों  
दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त दर्द से भर न आए क्यूँ 
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ ..... दोनों मिसरे पूर्ण और स्वतंत्र हैं 
.
3) दोनों मिसरे असम्बद्ध हों और पूरी बात के कई मतलब निकलते हों 
हर चंद मैं हूँ तूती-ए-शीरीं सुखन वले 
आईना आह मेरे मुक़ाबिल नहीं रहा ....दोनों मिसरों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है ..
तीनो शेर ग़ालिब के हैं ..
ये तीसरा प्रकार शायरी में रहस्य पैदा करता है और जो ये सफलता पूर्वक लगातार कर पाता है वो 600 साल में एकमात्र ग़ालिब बन जाता है 

यू tube की ये लिंक समय निकाल कर सभी ग़ज़ल सीखने वाले अवश्य सुनने ..

https://www.youtube.com/watch?v=jnmzgG54KWA
सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on May 16, 2015 at 11:41am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service