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-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।  फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?


'मौलिक व अप्रकाशित' @मनन

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Comment by Manan Kumar singh on May 4, 2015 at 12:54pm

आदरणीय जितेंद्र जी, ओमप्रकाश जी,मिथिलेश जी व आ॰राजेश कुमारी जी, स्नेहिल और प्रेरणास्पद टिप्पणियों के लिए आप सबका बहुत-बहुत आभार। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 4, 2015 at 11:12am

बहुत अच्छी लघुकथा,आदरणीय मनन जी. इसे स्वतंत्रता कहलो या कुछ पल के रिश्ते, आज के दौर में इसे स्वीकार किया जाना ही पड़ेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 3, 2015 at 9:55am

आज की पीढ़ी की  स्वछन्दता का कहूँ या चरित्र का आईना कहूँ इस लघु कथा को ...बधाई इस कटाक्ष पर .

Comment by Omprakash Kshatriya on May 3, 2015 at 7:02am

अंतिम पंक्तियों ने लघुकथा में जान डाल दी .

आज के युग की सच्चाई .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 10:15pm

अब क्या कहें ? जो है सो है..

वैसे यह भी एक लघुकथा है.. अपने मक़सद में क़ामयाब..

शुभकामनाएँ, भाईेजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2015 at 10:01pm

हा हा हा 

बहुत बढ़िया कटाक्ष आज के प्रेमी युगल की वास्तविकता पर 

बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by Manan Kumar singh on May 2, 2015 at 8:31pm

आदरणीय महिमाजी, आभार आपका कथा के मर्म पर टिप्पणी करने के लिए। 

Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 8:23pm

आज के तथाकथित युगल प्रेमियों के सच को सही बुना आपने ..बधाई आपको

Comment by Manan Kumar singh on May 2, 2015 at 8:15pm

आदरणीय वीनस केसरी जी, हाहाहा   धन्यवाद 

Comment by Manan Kumar singh on May 2, 2015 at 8:14pm

आदरणीय विजय शंकर जी, प्रयास को प्रोत्साहित करने हेतु धन्यवाद। 

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