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वह आकाश में परिंदे की तरह उड़ रही थी ।माँ निश्चिन्त थी की बेटी तरक्की कर रही और पिता आजादी दे समय से ताल मिला रहे थे।बेटी के सोने -जागने , आने जाने से किसी का कोई सरोकार नहीं था।

" पापा मेरी तबियत खराब हो गयी है ।"

मुँह अँधेरे होटल पंहुचे पिता अपनी पुत्री को अस्त व्यस्त और नशे में डूबी देख समझ चुके थे की क्या घट चुका है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2015 at 10:50am

सुंदर लघुकथा, आदरनीय अर्चना जी. ऐसे गैरजिम्मेदारियां जिसमे माता-पिता भी गुनाहगार शायद यही अंजाम होता है. आपका ओ.बी.ओ. पर स्वागत है आप लिखते रहिये.

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