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2122 1212 112/22

जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ

लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ

 

तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे

ये समझना तू बेनज़ीर हुआ

 

जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ

ये खबर है कि मैं फकीर हुआ

 

बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़

सो निशाने पर अब के तीर हुआ

 

तंग हाली ज़बाँ से झाँके है

कौन कहता है वो अमीर हुआ

(मुशीर-सलाहकार,  असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 8:36am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आप जैसे रचनाकार द्वारा प्रशस्ति पाना सदैव हर्ष का कारण होता है आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 8:34am

आदरणीय श्याम मठपाल सर रचना को समय देने एवं सराहने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 8:33am

आदरणीय मिथिलेश भाई आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 8:32am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी रचना को सराहा

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 20, 2015 at 5:41pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आज बहुत दिनों बाद अपने इस प्रिय मंच से जुड़ने का मौका मिला ..आते ही आपकी रचना ..और हमेशा की तरह इस बार भी पढने से ज्यादा  बहुत कुछ सिखाती हर शेर एक से बढ़कर एक   इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 4:23pm

ला जवाब रचना .. एक एक शेर कीमती आदरणीय शिज्जू साहब ! दिली दाद कुबूल करें 

Comment by Nirmal Nadeem on March 19, 2015 at 10:02pm
उम्दा ग़ज़ल वाह वाह वाह बधाई।

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 6:31pm

आदरणीय शिज्जु भाई , पाँच के पाँच अशआर बेहद खूबसूरत हुये हैं ॥ पूरी गज़ल के लिये मुबारकबाद कुबूल करें ॥ बस वाह वाह ॥


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Comment by rajesh kumari on March 19, 2015 at 5:55pm

तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे

ये समझना तू बेनज़ीर हुआ-----लाजबाब 

 

जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ

ये खबर है कि मैं फकीर हुआ====उम्दा 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई शिज्जू भैय्या दिली बधाई स्वीकारें 

 

Comment by Shyam Narain Verma on March 19, 2015 at 11:27am
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।

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