For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिद्द की दीवार - लघुकथा

जिद्द की दीवार
           पड़ोस के जोशीजी की छोटी बेटी माला फिर मायके लौट आयी थी, बड़ी बेटी कामना पहले ही पति से संबंध विच्छेद के बाद घर में विराजमान थी। जोशीजी बेटियो की जिद्दी स्भाव के चलते चिन्तित रहते थे तो उनकी पत्नी बेटियो के ससुराल वालो को भला-बुरा कहकर अपना मन शान्त कर लेती थी। दिन गुजरने के साथ बूढे माँ बाप की उम्र का ग्राफ बढ़ रहा था और बेटियो की जवानी ढल रही थी।
लेकिन एक शाम छोटा दामाद रवि, अचानक अपनी पत्नि को लिवाने आ पहुँचा तो घर में सभी के चेहरे खिल गये। माला भी सारी बाते भूल कर चलने की तैयारी मे लग गयी।
न चाहते हुये भी कामना 'दोनो' को बिदा करते समय रवि से इस तरह अचानक लिवाने का कारण अनायास पूछ ही बैठी। रवि कुछ झिझक कर बोला। "क्या कहुँ, बस यूँ समझो जीजी ज्ञान मिल गया।"
कामना के प्रश्नचिन्ह बने चेहरे को देखते हुये रवि कहने लगा। "जीजी, ये पति पत्नि का रिश्ता सात फेरो की नींव पर बने दो मकानो की तरह होता है जिसके बीच अक्सर पति पत्नि की आपसी गल्तियो और जिद्द की ईटो से बनी दीवार खड़ी हो जाती है। 'दोनो' को चाहिये कि समय समय पर इन ईटो को गिराते रहे कयोंकि जब ये दीवारे अपने ही वज़ूद से बड़ी हो जाती है तो पति पत्नि एक दूसरे की आँखो से ओझल हो जाते है। और अंत में दीवारे गिरती भी है तो कुछ शेष नही रहता।" रवि की बात पूरी हो चुकी थी।
"लेकिन कई महीनो बाद ये समझदारी का ज्ञान....." कामना खामोश नजरो से रवि को देखती हुयी बोली।
"नही जीजी, मैं इतना ज्ञानी नही। दरअसल कल करण भाई साहब (कामना का पति) मिले थे।" रवि आँखे झुकाये बोला। "ये उन्ही के शब्द थे, "कह रहे थे रवि... हम तो समय रहते ये दीवार नही गिरा पाये मगर तुम चाहो तो............।" अपनी बात को अधूरा ही छोड़ रवि माला का हाथ पकड़ जा चुका था।
रात गुजरते गुजरते कामना भी अपनी जिद्द की दीवार गिराकर  लौटने का निर्णय कर चुकी थी।
"विरेन्दर वीर मेहता"
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 736

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:20pm

सन्देश परक सीधी सरल रचना के लिए बधाई श्री वोरेम्द्र वीर मेहता जी 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 18, 2015 at 5:10pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ..  हरी प्रकाश दुबे जी.... गिरिराज भंडारी जी.. गणेश बागी जी... मोहन सेठी जी ...शिज्जू शकूर जी .....सोमेश कुमार जी ... और आदरणीय सौरभ पांडेयजी .... कथा पर समय और अमूल्य विचार देने के साथ हौसल्ला अफजाई के लिए आप सभी का तहे दिल से आभारी हूँ .

 

आदरणीय गुनीजनो कथा की समीक्षा और उसकी कमियों की और ध्यान आकर्षित करवाने और सुझाव देने के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद....मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका सहयोग मिलता रहेगा...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 11:28am

इस कथा के शीर्षक पर आदरणीय अभी ध्यान गया. ज़िद का बहुवचन ज़िद ही रहने दें. ज़िद्दों करना व्याकरण सम्मत नहीं होगा.
जिसे ज़िद की लत हो उसे ज़िद्दी कहा जाता है. उस हिसाब से इस कथा का शीर्षक ज़िद्दियों की दीवार होगा.

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 11:09am

सुंदर विषय है ,आजकल ये दृश्य आम सा हो गया है ,गुणियों की बातों पर ध्यान दें .टंकन-त्रुटियों को सुधार लें |apka अनुज 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 9:39am

आदरणीय विरेन्द्र जी सार्थक संदेश देती हुई कहानी है, बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 4:49am

आदरणीय वीरेन्द्र वीर जी, आपकी कहानी का कथ्य संदेशपरक है. आपको हार्दिक बधाइयाँ. वैसे कथानक पर अभी और काम करने की आवश्यकता है. विश्वास है आपका अभ्यास सतत बना रहेगा ताकि आपकी और समृद्ध कहानियों से हम लाभान्वित होते रहें.
शुभेच्छाएँ

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 18, 2015 at 4:46am

लघु कथा भावपूर्ण एवं शिक्षाप्रद है ...बहुत खूब.... बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 17, 2015 at 9:58pm

सुन्दर प्लाट पर अच्छी लघुकथा का प्रयास हुआ है, कसावट की कमी लगी, बहरहाल इस प्रयास पर बधाई आदरणीय वीरेंद्र जी. 

'जिद्दो की दीवार' की जगह 'जिद्द की दीवार' कहना भी ठीक होगा. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:51pm

बहुत खूब आदरणीय , पति पत्नि के सम्बन्धों का गणित बढिया समझाया आपने ! बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on March 17, 2015 at 7:55pm

आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी, सुन्दर संदेशपूर्ण रचना , हार्दिक बधाई ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service