For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  222    222    2

बातो  के लच्छे लाये

यारो दिन अच्छे लाये

 

भारत को फिर से तुमने

दिन में नक्षत्र दिखाये  

 

संसार पसारे  आँचल

तुमने बहु नाच नचाये

 

पहले नजरे की ऊंची

अब फिरते आँख चुराये 

 

हम अपना दर्द सुनाते

तुम अपनी जाते गाये

 

दूरागत ढोल सुहाने

जब जाना तब पछताये

 

थे रंक, बनाया राजा

तुम हम पर ही गुर्राये

 

ईश्वर देखेगा तुमको

हम नत है आँख झुकाये

 

उतरेगा यह भी इक दिन

जो परचम हो लहराये 

 

सत्ता मिटती है उसकी

जिसको माँ याद न आये

 

सोया है जिन्न यहाँ पर

जन-तंत्र न यह जग जाए     

 

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:48am

काहें हो.. काहें खिसियाये हैं ? ..

ई कहाँ लिखा है जे कवी-सायर को जेतना खीस बरा रहेगा ओतने ऊ नीमन (अच्छा) कवी-सायर होगा ?
साहेब गजलियाइयेगा कि खिसियाइयेगा ?

जय होऽऽ .. :-)))

बधाई, आदरणीय. किन्तु, प्रवाह को और साधने की आवश्यकता है. 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 17, 2015 at 8:09pm

छोटी बह्र में बहुत अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ आपको ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:45pm

आ० हरि  प्रकाश जी

आपका सादर आभार  .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:44pm

आ० विजय सर !

आपका आशीष मिलता रहे . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:43pm

आ० वर्मा जी

सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:43pm

आ० मठपाल जी

आ आपका हार्दिक आभार  .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:42pm

आ० अनुज भंडारी जी

आपका समर्थन पाकर मई धन्य हुआ . सादर.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:39pm

आदरणीय डॉक्टर गोपाल सर ,बेहतरीन रचना की प्रस्तुति के लिये बधाई !

/भारत को फिर से तुमने

दिन में नक्षत्र दिखाये/...

/संसार पसारे  आँचल

तुमने बहु नाच नचाये/

/थे रंक, बनाया राजा

तुम हम पर ही गुर्राये/

बहुत ही बढ़िया अनेको सन्देश देती हुई आपकी लाजवाब रचना ! सादर

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 6:13pm
ग़ज़ल भी व्यंग भी , बहुत अच्छा है, आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , बधाई, सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on March 16, 2015 at 4:36pm

इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service