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एक गीत- निर्मल नदीम

मेरे घर का सूना आँगन सूना - सूना ही रह जाता
अगर तुम्हारे पग पायल की मधुर मधुर झंकार न होती।

तुमने पाँव रखा जैसे ही
मुर्दे दिल में जान आ गयी;
ज़र्द फूल के रुखसारों पर
लाली बनकर ख़ुशी छा गयी,
यह चांदनी जलन बन जाती, ठण्डी छाँव चुभन बन जाती,
अगर न तुम जुल्फ़ें लहराती, शीतल पड़ी फुहार न होती।

जलने लगे स्वतः दीपक सब
लगा महकने कोना - कोना,
कंकड़ - पत्थर, हीरे - मोती,
लगे मृत्तिका सच्चा सोना,
मुक्त गगन के चाँद सितारे, उतर गए आँगन में सारे,
अगर न तुम होती सपनों की छाया तक साकार न होती।

घाव हृदय का भर तो जाता
पर निशान रह जाता बाकी,
आंसू भी थम जाते लेकिन
आदत पड़ जाती मदिरा की,
फूल धूल में सब झड़ जाते, रंग सुगंध सभी उड़ जाते,
अगर न तुम मुस्काती आती कोयल की मनुहार न होती।

अगर छलकते नहीं अश्रु तो
सारा जग वीराना होता,
और टूटते नहीं स्वप्न तो
झूठ हर अफ़साना होता,
अगर न मरती इच्छा प्यासी गीतों का फिर जन्म न होता,
अगर न सावन आता तो फिर गाती यहाँ बहार न होती।।

निर्मल शुक्ल "नदीम"
(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:48pm

आदरणीय नदीम जी सुन्दर रचना है ,हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:38pm

प्रिय नदीम

एक अच्छी  और बेहद सुन्दर रचना के लिये  मैं आपको बधायी देता हूँ.सस्नेह.

Comment by Shyam Narain Verma on March 16, 2015 at 4:43pm

बहुत सुंदर रचना बधाई आपको 

Comment by Nirmal Nadeem on March 16, 2015 at 4:33pm

bahut bahut dhanywaad aap sab ka. aabhari hu

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:30pm

Aadarnya Nadeem Ji,

Sundar Bhawon yukt  rachna ke liye badhai.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 1:26pm

बहुत बढिया गीत रचना हुई है , बधाइयाँ , आ. नदीम भाई ।

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