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नारी और देवी तुल्य ? (अनन्या )

नारी बरसों से   देवी तुल्य कहलाती है 

मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है 

केवल कागजों में छपी हैं यह कागज़ी बातें 

सच्चाई मगर.. कुछ और बयां कर जाती है 

चीखें दबी -दबी सी ,साँसे घुटी. घुटी सी 

पथराई आँखें बदहवास सी नज़र आती है 

रुदन को गुप्त रख स्मित बरसाती है   

निशब्द सी धडकनें  डरकर रह जाती है 

जज्बात उसके  सदा सहमें से लगते हैं 

घरोंदे में छुपकर  वह जीवन बिताती है 

सिंदूर में रंग कर रक्तिमा कहलाए जब 

 लाल सूरज सी बिंदिया बेहद जलाती है 

नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है 

मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है 

( मौलिक और अप्रकाशित )

डिम्पल गौड़ ' अनन्या '

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Comment by डिम्पल गौड़ on February 28, 2015 at 11:20pm

आपकी प्रतिक्रिया बहुत प्रोत्साहित करती है...सादर आभार आदरणीय डॉक्टर विजयी शंकर जी |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 28, 2015 at 9:51am

आदरणीया डिम्पल कौर जी इस सुन्दर रचना पर बधाई आपको !

सिंदूर में रंग कर रक्तिमा कहलाए जब 

 लाल सूरज सी बिंदिया बेहद जलाती है ...सुन्दर 

नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है 

मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 28, 2015 at 9:11am

सारी बातें सत्य हैं..और इसी लिए नारी देवी कहलाती है..जिस दिन ये गुण नही रहेंगे ..फिर तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी..प्रणाम आदरणीय!!बधाई!

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 28, 2015 at 12:53am
सुन्दर विचार, सुन्दर प्रस्तुति, बधाई , सादर।
Comment by डिम्पल गौड़ on February 27, 2015 at 7:25pm

धन्यवाद आ. महर्षि त्रिपाठी जी |

Comment by डिम्पल गौड़ on February 27, 2015 at 7:24pm

मेरी रचना की सराहना करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ..आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी |

Comment by maharshi tripathi on February 27, 2015 at 4:43pm

बहुत अच्छी रचना आ.डिम्पल जी,,,,आपको बधाई|

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 27, 2015 at 1:00pm

आ 0 अनन्या जी

सुन्दर विचार i एक अच्छी प्रस्तुति  i सादर i

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