For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :: इक परिन्दा पागल-सा (मिथिलेश वामनकर)

212 / 1222 / 212 / 1222

 

वाकिया हुआ  कैसे   बाद   ये  जमानों  के

मस्ज़िदी भजन  गाये  मंदिरी अजानों के

 

हौसला  चराग़ों  का  यूं चला  तबीयत  से

ढंग ही बदल देगा  रात  की   दुकानों   के

 

यूं   बुलंदियों  में  है   तीरगी   बराबर   से

बू-ए-खूं  है आँगन में  संदली  मकानों   के

 

इक परिन्दा पागल-सा, बैठ  के  मुंडेरों  पे

मायने   बताता   है,   बारहा   उड़ानों   के

 

यूं तसल्लियाँ मेरी आज भी  मुनासिब  है

इम्तहाँ वो क्या लेंगे  मेरे  इत्मिनानों   के

 

क्यूं  कहूं  कसीदा मैं,  शान में  समंदर की 

गीत  गुनगुनाता  हूँ   बूँद  की  उठानों  के

 

दोसती  दिखाते  है    दुश्मनी   निभाते  है

हम  हुनर  बताते  है  आज  के सयानों  के

 

क़र्ज़ की तिजारत में  आसरा बचा लो तुम 

यार  खूब  देखे   है     हस्र  आशियानों  के

 

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

 

 

बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन अशतर:

अर्कान –   फ़ाइलुन / मुफ़ाईलुन / फ़ाइलुन / मुफ़ाईलुन

वज़्न –    212 / 1222 / 212 / 1222

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 23, 2015 at 11:59pm

आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी, ग़ज़ल पर स्नेह और मुक्तकंठ प्रशंसा से अभिभूत हूँ हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 23, 2015 at 11:57pm

आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आपने, वाकिया शब्द मिसरा-ए-सानी को अधिक स्पष्ट कर रहा है,

आदरणीय सौरभ भाई जी का सुझया मिसरा -  मायने बताता है बारहा उड़ानों के ,  वाकई अच्छा लग रहा है अतः उसे जस का तस संशोधित कर रहा हूँ. मार्गदर्शन के लिए आभार.

Comment by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 8:27pm
My favourite Bahr...हालांकि इस पर अभी कोशिश नहीं की है मैंने। गुनगुनाने में मज़ा आ गया भाई मिथिलेश जी। सभी अशआर बढ़िया लगे।
Comment by Pari M Shlok on February 23, 2015 at 1:59pm
वाह बहुत ही लाजवाब
Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 9:07am

इक परिन्दा पागल-सा, बैठ  के  मुंडेरों  पे

पूछता  मुझे तासिर  पंख  की  उड़ानों  के

 

यूं तसल्लियाँ मेरी आज भी  मुनासिब  है

इम्तहाँ वो क्या लेंगे  मेरे  इत्मिनानों   के

 

वो  नदी  समंदर  पे  खूब कह  रहें  नज्में

हम ग़ज़ल  सुनाते है  बूँद  की  उठानों  के

 आदरणीय मिथिलेश जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है ,सभी अशआर लासानी हुये है |हम ग़ज़ल सुनाते हैं बूँद की उठानों की ' है या कोई और अर्थ है किंचित स्पष्ट नहीं हो रहा है ,भाव तक तो मैं पहुँच गया हूं |इस शानदार प्रस्तुति के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन |सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 7:51am

आ. मिथिलेश भाई , आदरणीय सौरभ भाई जी का सुझाया मिसरा -  मायने बताता है बारहा उड़ानों के ,  बहुत अच्छा लग रहा है ।

मै इस मिसरे के पक्ष मे हूँ ॥

मतले में  --  हादसा के स्थान पर वाक़िया  मेरी समझ में बहुत सही रहेगा , ( ज़रूरी बिल्कुल नहीं है ,  मेरा मन दूसरे मिसरे में कही बात को हादसा नहीं मान पा रहा है , तो सोचा कह ही दूँ )

Comment by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 2:03am

आदरणीय मिथिलेश भाई, बहुत ही सशक्त रचना है, राग  दीपक तो छोड़िये आप तो लगता है ग़ज़लों से ही आग लगा देंगे...........

हौसला  चराग़ों  का  यूं चला  तबीयत  से

ढंग ही बदल देगा  रात  की   दुकानों   के................शानदार , हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 23, 2015 at 12:42am

आदरणीय डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी' सर जी  ग़ज़ल पर स्नेह सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 23, 2015 at 12:41am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  सर, ग़ज़ल पर स्नेह और मुक्तकंठ प्रशंसा से अभिभूत हूँ. रचना आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ. सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 23, 2015 at 12:38am

आदरणीय महर्षि भाई जी सराहना के लिए हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service