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समझ कर भी ये कुछ समझा नहीं है
ख़ुदा से आदमी डरता नहीं है

हमें हक़ के लिये लड़ना पड़ेगा
ये मौक़ा हाथ मलने का नहीं है

शराफ़त की दुहाई देने वालों
मुक़ाबिल इतना शाइस्ता नहीं है

ये आवाज़ों का जंगल है यहाँ पर
कोई फ़न्कार की सुनता नहीं है

नज़र के सामने रहता है लेकिन
कभी हमने उसे देखा नहीं है

ये दुनिया है संभल कर पाँव रखना
तुम्हारे घर का बाग़ीचा नहीं है

मैं अपनी क़ब्र में लेटा हुवा हूँ
मुझे अब कोई अन्देशा नहीं है

"समर" आँखें बदलती जा रही हें
मिरा सपना अभी टूटा नहीं है

---समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on February 8, 2015 at 10:27pm
जनाब डा.आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 8, 2015 at 10:24pm
जनाब उमेश कतारा जी,आदाब,ग़ज़ल पसंद करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 8, 2015 at 10:21pm
जनाब गुमनाम पिथोगड़ी जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत से दिल बाग़ बाग़ हो गया,शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 8, 2015 at 10:15pm
जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब अर्ज़ करता हूँ,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
Comment by Samar kabeer on February 8, 2015 at 10:10pm
जनाब ख़ुर्शीद ख़ैराड़ी जी,आदाब,आपने मेरी आवाज़ को सुन लिया,तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
Comment by Samar kabeer on February 8, 2015 at 10:02pm
मोहतरमा प्रतिभा त्रिपाठि जी,आदाब अर्ज़ करता हूँ,आपने मेरी ग़ज़ल को अपना क़ीमती समय दिया,तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 9:04pm

नज़र के सामने रहता है लेकिन
कभी हमने उसे देखा नहीं है
ये दुनिया है संभल कर पाँव रखना
तुम्हारे घर का बाग़ीचा नहीं है
मैं अपनी क़ब्र में लेटा हुवा हूँ
मुझे अब कोई अन्देशा नहीं है........................हर शेर उम्दा है  इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by umesh katara on February 8, 2015 at 8:02pm

वाह

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 8, 2015 at 7:34pm
मैं अपनी क़ब्र में लेटा हुवा हूँ
मुझे अब कोई अन्देशा नहीं है

नज़र के सामने रहता है लेकिन
कभी हमने उसे देखा नहीं है

बधाई ,आदरणीय समर कबीर जी, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 6:13pm
सभी शेर बहुत अच्छे हैं, यह तो कुछ और भी ,
नज़र के सामने रहता है लेकिन
कभी हमने उसे देखा नहीं है
बधाई ,आदरणीय समर कबीर जी, सादर।

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