For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोपहर में घंटी बजने पर उसने दरवाजा खोला तो वो दरिंदा जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसकी अस्मिता को तार तार कर गया | अब शरीर तो जिन्दा बच गया लेकिन आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी | एक ऐसा हादसा जिसके लिए जिम्मेदार वो नहीं थी लेकिन भुगतना उसी को था |
पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी , शायद अब वो किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाएगी | एक वहशी की गलती की सज़ा अब पूरे पुरुष समाज को भुगतनी होगी |

.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on February 6, 2015 at 2:24am

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी | रचना पर अपने विचार रखने के लिए धन्यवाद | आप लोगों की टिप्पणी पाकर लिखना सफल हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 1:33am

उत्कृष्ट और सफल लघुकथा, इस विषय पर बयानबाजी अधिक और रचनाकर्म कम होता है लेकिन आपने जिस संतुलित ढंग से विषय को सटीक तरीके से लघुकथा में व्यक्त किया है, उसके लिए हृदय से बधाई प्रेषित हैआदरणीय विनयजी. शेष आदरणीय सौरभ सर का आशीर्वाद आपको मिल ही गया है, 

Comment by विनय कुमार on February 6, 2015 at 12:44am

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी | सबसे पहले मैं अभिभूत हूँ अपनी लघुकथा पर आपकी इतनी सारगर्भित और विस्तृत टिप्पणी पाकर | आप बिलकुल सच कह रहे हैं कि दैहिक सुचिता जैसी कोई अवधारणा नहीं होनी चाहिए लेकिन समाज ने कुछ ऐसी धारणाएं बना डाली हैं जिससे बाहर निकलने में बहुत समय लगेगा | किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे गुनाह कि सजा कैसे दी जा सकती है जो गुनाह उसने किया ही नहीं हो , लेकिन ऐसे मामलों में स्त्री सजा भुगतती है | अफ़सोस ये भी है कि इस मनोस्थिति को जिसे सबसे ज्यादा समझना चाहिए , वही , यानी कि बाक़ी स्त्रियां , ही नहीं समझती हैं |
ऐसे अपराधों का विरोध करने के लिए कभी कभी स्त्री ,चाहे अनचाहे ऐसी स्थिति में पहुँच जाती है जहाँ उसके लिए सारा पुरुष समाज ही अपराधी हो जाता है | यहाँ भी बाक़ी सारा पुरुष समाज अनजाने में ही दोषी बन जाता है | एक बार पुनः आपका

आभार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2015 at 11:44pm

आदरणीय भाई विनयजी, आपकी इस लघुकथा के माध्यम से जिसतरह से बलत्कृता के मनोवैज्ञानिक पक्ष को सशकत ढंग से उभारा गया है उसके लिए आप अवश्य ही बधाई के पात्र हैं. जिस घटना पर किसी स्त्री का कोई बस नहीं, उस घटना केहो जाने पर इसकी सज़ा जिस तरह से वह भुगतती है, यह कुछ और नहीं इस समाज की सोच में पैठ चुकी अतार्किक विकृति का ही नतीजा है.

मैं तो दैहिक शुचिता की पूरी अवधारण को ही ख़ारिज़ करता हूँ. स्थूल शरीर वस्तुतः सूक्ष्म शरीर या अन्तःकरण के सभी अवयवों की दशाओं का प्रस्फुटीकरण (manifestation) होता है. यानि जबतक कोई मन शुद्ध है, शरीर अशुद्ध हो ही नहीं सकता. हम इस राष्ट्र के प्राचीन वांग्मय देखें तो यही ज्ञात होता है कि शरीर को लेकर कोई मंतव्य कभी इतना लिजलिजा एवं इतना अतर्किक नहीं रहा है. लेकिन बाद की सोच और परिपाटियों का कुप्रभाव हमारी सोच और समझ पर ऐसा पड़ा है कि अन्यथा शुचिता हमारी सोच का अनन्य हिस्सा बन गयी.
आपकी इस प्रस्तुति के लिए पुनः हार्दिक बधाई.

मुझे फिल्म ’घर’ का वह दृश्य याद आ गया जहाँ रेखा ने बलत्कृता के पात्र को एनेक्ट करने के क्रम में पति विनोद मेहरा को एक तरह से अपने से दूर कर लिया था. बाद की फिल्म दोनों पात्रों के बीच पुनर्प्रतिस्थापित होती हुई समरसता को प्रस्तुत करती है. ऐसे कॉम्प्लिकेटेड विषय पर यह ’घर’ एक बहुत ही सशक्त फिल्म थी.

शुभेच्छाएँ

Comment by विनय कुमार on February 5, 2015 at 8:59pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | आपकी सारगर्भित टिप्पणी से लिखना सार्थक हुआ |

Comment by विनय कुमार on February 5, 2015 at 8:58pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी | इस घटना के बाद पुरुषों के प्रति उपजे अविश्वास के चलते उसने पति को झटक दिया और अपनी बेबसी पर रो पड़ी | धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 8:39pm

एक कटु सच्चाई है आपकी इस लघु कथा में ....यही कारण है ऐसी घटनाओं के बाद मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होती है एक स्त्री की मनोस्थिति को बखूबी समझा रही है लघु कथा ...जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 4:00pm

मोहन बेगोवाल जी की बात से सहमत हूँ ,विनय जी बात कुछ अधूरी रह गई थी , तब तक पोस्ट हो गया .....सुन्दर रचना ! 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 3:54pm

 आदरणीय विनय जी......आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी...बधाई  , रचना सुन्दर ,सार्थक है ........पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी.........ये क्यों हुआ ?....

Comment by विनय कुमार on February 4, 2015 at 7:06pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी .वज़ह तो सिर्फ इंसान की पाशविकता ही होती है इन मामलों में..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
9 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
11 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
47 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service