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परिवर्तन - (अतुकांत): गिरिराज भंडारी

परिवर्तन

*******

 

बून्द की नाराजगी का संज्ञान

सागर ले ही

ज़रूरी नहीं

फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है

प्रकृति प्रदत्त

 

संज्ञान अगर सागर ले भी ले तो

खुद में कोई परिवर्तन भी करे ये नितांत ज़रूरी नहीं  

वैसे हर नाराजगी कोई परिर्वतन ही चाहती हो किसी में

ये भी ज़रूरी नहीं

 

कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है

कुछ स्वांतः सुखाय

अपने ज़िन्दा होने के सबूत के बतौर

 

वैसे तो जीवंतता का एक अहम तत्व है

परिवर्तन

अब, औरों में नहीं

तो ख़ुद में सही 

*************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 731

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2015 at 10:47am

ये कमाल की पंक्तियाँ है -

कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है

कुछ स्वांतः सुखाय

अपने ज़िन्दा होने के सबूत के बतौर

आ० भाई गिरिराज जी , बहुत खूब कहा .इस सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 8:16pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 8:16pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , इतने बड़े सम्मान के योग्य तो मै नहीं हूँ , आपकी सदाशयता के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया । सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका अभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 8:13pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , माफी मांगने जैसी तो कोई बात हुई ही नहीं , फिर भी आपकी सरलता बहुत भायी । सराहना के लिये आपका पुनः आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 8:11pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , मेरा सोया हुआ मूल स्वभाव कभी कभी सर उठा लेता है , तब ऐसी रचना हो जाती है । सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 8:09pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , यही शायद मेरा मूल स्वभाव है , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 8:08pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 6:52pm

अति सुंदर अतुकांत प्रस्तुति ,सर. आपकी कविताएं सिर्फ ठोस सच लिए, होती रही हैं. तनिक भी कल्पनायें नहीं.. पढ़कर आनंद आता है , बधाई व् गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

Comment by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:44pm

बून्द की नाराजगी का संज्ञान

सागर ले ही

ज़रूरी नहीं

फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है

प्रकृति प्रदत्त

आदरणीय गिरिराज सर , बहुत उम्दा रचना हुई है आदरणीय कृष्ण बिहारी नूर साहब का एक शेर याद आ रहा है आपके सम्मान में आदर सहित-

मैं एक क़तरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है 

हुआ करे जो समन्दर मेरी तलाश में है 

''जइ है बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि की

बूँदता बिलै है बूँद  बिबस बिचारी की |''

अति सुन्दर भाव है  वाह... वाह   ...वाह .. सादर अभिनन्दन  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 1:19pm

ये कमाल की पंक्तियाँ है -

कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है

कुछ स्वांतः सुखाय

अपने ज़िन्दा होने के सबूत के बतौर

कृपया ध्यान दे...

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