For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 दुपट्टा

भारत के वक्ष पर

सलीके से पड़ा

सफ़ेद दुपट्टा

वायुयान से दिखी

धवल गंगा !

गंगा अब यहाँ नहीं बहती

साधु ने बालक से कहा

यह गंगा है

स्नान करोगे तो तर जाओगे

 

बालक बोला

कैसे साधु हो तुम

गंगा अब यहाँ नहीं बहती

इस नाले में नहाओगे

तो मर जाओगे !

मरी हुयी नदी

 

आत्मा जा चुकी है

शरीर बचा है

धीरेधीरे सड़ रहा है जो

पर हम मानते नहीं

गाय की मरी बछिया की तरह

चिपकाये है उसे

यह मानकर की

अभी वह मरी नहीं

जग को तारने वाली

स्वयं तो तरी नहीं

कहते है -संसद का मन चंगा

तो मरी हुयी नदी भी है

गंगा ! 

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 11, 2015 at 1:19pm

आदरणीय दादा

आपके स्नेह से अभिभूत  i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 4:52pm
आदरणीय डॉ साहब, बहुत अच्छी लगी आपकी रचना....प्रबुद्ध भावों से ओतप्रोत...नए रचनाकारों के लिए शिक्षाप्रद. सादर.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2015 at 12:52pm

अनुज

आपका आभार i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2015 at 10:14am

आत्मा जा चुकी है

शरीर बचा है

धीरेधीरे सड़ रहा है जो

पर हम मानते नहीं

गाय की मरी बछिया की तरह

चिपकाये है उसे

यह मानकर की

अभी वह मरी नहीं

जग को तारने वाली

स्वयं तो तरी नहीं

कहते है -संसद का मन चंगा

तो मरी हुयी नदी भी है

गंगा !
  सभी रचनाये बहुत सुन्दर लगीं , पर ऊपर वाले का क्या कहना ! बहुत बधाइयाँ आदरणीय बड़े भाई ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 11:38am

हरि प्रकाश जी

आपका शत -शत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 11:37am

सोमेश जी

बहुत बहुत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 11:36am

वामनकर जी

आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 11:35am

विजय सर !

आपकी  भावनाओ का समादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 11:34am

गुमनाम जी

आपका आभार i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:13pm

आदरणीय 

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ....जग को तारने वाली..स्वयं तो तरी नहीं...कहते है -संसद का मन चंगा...तो मरी हुयी नदी भी है

गंगा ! ....अत्यंत शानदार रचना , सुन्दर कटाक्ष....हजारों करोड़ रूपये पी गए लोग पर प्यासी है अभी भी गंगा , हार्दिक बधाई आपको ! सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
7 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service