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नाम तुम्हारे (गीत )

नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा

तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा

अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी

पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी

जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |

नाम तुम्हारे..........

गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला

बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला

जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |

नाम तुम्हारे ..........

खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी बोले

शब्द तुम्हारे सुनकर पत्ते,कलियाँ.भौरे डोलें

हलचल पूरा ताल करे था जब तुमने कंकड़ फैंका|

नाम तुम्हारे..........

आँख तुम्हारीं झील समंदर याकि दुर्लभ मोती

छंटता है जिससे अँधियारा तुम हो वो ज्योति

खोया हूँ मैं तुममे जब से तुम को देखा

नाम तुम्हारे..........

चंचल हिरणी तुम थी ,भरती रही कुलांचे

मोर,चकोर,जोगी,साधू सब तेरी धुन में नाचें

हो जाएगा वो तो गद्गद् हो तुम जिसकी किस्मत-रेखा |

नाम तुम्हारे..........

मतवाली मधुशाला बोलूं या बोलूं तुम्हें ताड़ी

अच्छे-अच्छे चित कर डाले हारे सभी खिलाड़ी

तुम्हारें नशे के आगे पानी भरने लगा हर ठेका |

नाम तुम्हारे..........

C-@-सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित,अगस्त 2014 ) 

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Comment

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Comment by asha pandey ojha on January 15, 2015 at 12:12am

वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण गीत  ,सम्मानीय  somesh kumar जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 14, 2015 at 8:44pm

श्रृगार रस से परिपूर्ण अच्छी रचना श्री सोमेश kumar जी .... नाम तुम्हारे 

Comment by somesh kumar on January 14, 2015 at 3:34pm

शुक्रिया ,स्नेह व् उत्साहवर्धन के लिए |

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 12:53pm

नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा

तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा.....सोमेश भाई सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:51pm

आदरणीय सोमेश भाई , गीत का बहुत उत्तम प्रयास हुआ है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आदरणीय , गीत के लिहाज़ से गेयता मे और कलों को और मात्राओं को साधने की ज़रूरत है ।

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 12:34pm

अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी

पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी

जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |

नाम तुम्हारे..........

 आदरणीय सोमेश भाई सुन्दर अति सुन्दर ,आपने तो मुझे लड़कपन की साथी याद दिला दी , वही तिल वही रेखा ,,कहीं ये वही तो नहीं | सादर  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:48am

सोमेश् जी

अच्छा  प्रयास है  i

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2015 at 10:57am

लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारेँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 13, 2015 at 11:19pm
आदरणीय सोमेश भाई जी सुन्दर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई।

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