** ग़ज़ल : वक़्त भी लाचार है.
2122,2122,212
आदमी क्या वक़्त भी लाचार है.
हर फ़रिश्ता लग रहा बेजार है.
आज फिर विस्फोट से कांपा शहर.
भूख पर बारूद का अधिकार है.
क्यों हुआ मजबूर फटने के लिए.
लानतें उस जन्म को धिक्कार है.
औरतों की आबरू खतरे पड़ी,
मारता मासूम को मक्कार है.
कर रहे हैं क़त्ल जिसके नाम पर,
क्या यही अल्लाह को स्वीकार है.
कौम में पैदा हुआ शैतान जो,
बन मसीहा आ गया गद्दार है.
नेकियाँ हर धर्म के उपदेश में,
बदनुमा किस धर्म में किरदार है.
पाक दामन साफ़ हो अपना जिगर,
छूत रोगी घर घुसे बेकार है.
**हरिवल्लभ शर्मा.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदमी क्या वक़्त भी लाचार है.
हर फ़रिश्ता लग रहा बेजार है.......... आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर , सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई आपको , सादर !
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