ग़ज़ल :- खार में भी कली खिला देगा
खार में भी कली खिला देगा ,
आदमी जब भी मुस्कुरा देगा |
यह तो दस्तूर है ज़माने का ,
नाम लिख कर कोई मिटा देगा |
खत को उठेंगे जब भी हाथ मेरे ,
मन मेरा आपका पता देगा |
जल रही हैं जड़ें बगावत में ,
पेड़ को अब पवन गिरा देगा |
इन पहाड़ों पर रोशनी न करो ,
आदमी घर यहाँ बना लेगा |
ये लगन मुझमे किस वजह से है ,
काम मेरा तुम्हे बता देगा |
खुद घिरा है वो बद्दुआओं में ,
वो यकीनन तुम्हे दुआ देगा |
आदमी सिर्फ एक बहाना है ,
जब भी देगा हमें खुदा देगा |
एक अभिनव फकीर आया है ,
बस्तियों में अलख जगा देगा |
(@अभिनव अरुण # १३-०२-२००४)
Comment
punah abhaar adarniy shri ambarish ji :-))
स्वागत है मित्र ! बहुत अच्छा लिखते हैं आप !
//आदमी सिर्फ एक बहाना है ,
जब भी देगा हमें खुदा देगा |//
//खुद घिरा है जो बद्दुआओं में ,
वो यकीनन तुम्हे दुआ देगा |//
मित्र 'अभिनव' जी, यथार्थ के धरातल पर सार्थक भावों से लबरेज सभी अशआर बहुत प्रभावशाली बन पड़े हैं | इस निमित्त हार्दिक बधाई स्वीकारें !
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने ग़ज़ल पसंद की हार्दिक आभार आपका !!
baut umda ghazal kshama der se padhi ya ye mere join karne se pahli hai.bahut pasand aaya har sher
संदीप जी आपके स्नेह से अभिभूत हूँ हार्दिक आभार आपका !! आपके द्वारा उद्धृत शेर भी बाकमाल है |
देर से ही सही मगर यहाँ पहुँच गया और पहुंचा क्या... बस मज़ा आ गया भईया..! एक शे'र याद आ गया आपकी ग़ज़ल पढ़ कर...
मेरा क़ातिल ही मेरा मुन्सफ़ है,
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा;
:-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-)
खत को उठेंगे जब भी हाथ मेरे ,
मन मेरा आपका पता देगा |
आदमी सिर्फ एक बहाना है ,
जब भी देगा हमें खुदा देगा |
बहुत ही खूबसूरत अशआरों से सजी हुई उम्दा ग़ज़ल.......
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