जीवन लड़कैया से, सपनो की नैया से
तारों के पार चलें, आओं ना यार चले
उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे
मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से
आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........
क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था
था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो
खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.......
डोली पे फूल झरे, दो दो कहार चले
सुन्दर सी सेज सजी, तपने को देख रही
मन की अगनिया को थोड़ा सा बार चले .........
पांचो का मेल यहाँ, पाँचों में मेल हुआ
मिलने को प्रीतम से दुल्हन चल दी, जैसे
नदिया से सागर तक, पानी की धार चले........
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
इस गीत के कैनवास यानि तथ्य-विन्यास तथा वैचारिक विस्तार पर अभिभूत हूँ.
बार-बार बधाई आदरणीय मिथिलेश भाईजी.
इस नवगीत में निर्गुन भाव की अंतर्धारा एक पाठक के तौर पर हमें रोमांचित कर रही है. खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.. के बाद आये दोनों बन्द जीवन की निस्सारता और सांसारिक परिपाटियों को बखूबी साझा कर रहे हैं. मन की अगनिया को थोड़ा सा बार चलें की अभिव्यक्ति में ’बारना’ सुगढ़ सोच के तहत प्रयुक्त हुए शब्द की तरह सामने आया है. इस भाव को पूरी सार्थकता दे रहा है अंतिम बन्द - पांचो का मेल यहाँ, पाँचों में मेल हुआ..
ओह ! सम्यक, भाई सम्यक !
१२-१२ की यति पर (वैसे, इसमें कहीं-कहीं स्वतंत्रता ली गयी है) इस नवगीत को सप्रवाह पढ़ना मुग्ध कर रहा है.
आपकी संवेदनशीलता और आपकी रचनाधर्मिता के प्रति हार्दिक बधाइयाँ और अनेकानेक शुभकामनाएँ.
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद
इस सुन्दर रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी .!
आदरणीय शिज्जु भाई जी आपका अनुमोदन पाकर धन्य हुआ ... ग़ज़ल विधा से अलग नवगीत पर इस प्रयोगात्मक प्रयास को, आपकी जो सराहना मिली है, मेरे लिए बहुत उत्साह वर्धक है ... हार्दिक आभार
आदरणीय मिथिलेशजी आप मुसलसल कमाल कर रहे हैं क्या खूब नवगीत रचा है आपने वाह बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय गिरिराज सर ग़ज़ल और नज्म से अलग गीतों पे भी प्रयास कर रहा हूँ, बात पुरानी है, बस अपनी तरह से कहने का प्रयास किया है, इस प्रयास की सराहना और स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार ... हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय बागी सर, आपको यह प्रयास पसंद आया, लिखना सार्थक हुआ. इस प्रयास की सराहना और स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार ... हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत बढिया बात कही है , पढ़ के बहुत अच्छा लगा । हार्दिक बधाई ॥
अंश को अंशी से मिलन का अद्भुत वर्णन इस नवगीत में हुआ है बहुत ही सुन्दर रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी .
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