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कितना तामझाम...(नवगीत ) सीमा हरि शर्मा

कितना तामझाम....(नवगीत)

कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।

स्वर्णिम किरणें सुबह जगाती
दिन भर आपाधापी है।
साँझ धुँधलके से घिर जाती
रात तमस ले आती है।
तम को रोज झाड़ बुहरया
जीवन आँगन में।....कितना तामझाम पसराया

गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीने का दम भरने वाले
मानव ने ये खुद सरजे।
दूर खड़ा मन है खिसियाया
जीवन आँगन में।.....कितना तामझाम पसराया

रेलम पेला धक्का मुक्की
चलती आवाजाही है।
जीवन सरकस जैसा चलता
जोकर की वावाही है।
एक गिरा दूजा धकियाया
जीवन आँगन में।

कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।

.
सीमा हरि शर्मा 26.12.2014
(मेरा यह नवगीत मौलिक एवं अप्रकाशित है)

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Comment by ajay sharma on December 26, 2014 at 10:38pm

apke navgeet ke sabhi band ....nayab .....manmohak .lage ....bar bar aur bar bar padhoonga ......bahut hi khoob ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 8:43pm

आदरणीय सीमा हरि जी इस सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ... इस पंक्तियों के लिए विशेष बधाई- 

गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।

जीवन सरकस जैसा चलता
जोकर की वावाही है।

तम को रोज झाड़ बुहरया (बुहराया) में टंकण त्रुटी हुई है ,,, सादर 

Comment by somesh kumar on December 26, 2014 at 8:16pm

सुंदर नवगीत हेतू बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 4:38pm

गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।.....सुन्दर रचना आदरणीया सीमा हरी शर्मा जी, हार्दिक बधाई !

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