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ग़ज़ल - क़सम ले लो उन्हें फिर भी न मैं बुरा कहता --( गिरिराज भंडारी )

क़सम ले लो उन्हें  फिर भी न मैं बुरा कहता

****************************************

१२१२      ११२२     १२१२     २२ /११२ 

वो मेरे दिल में न होते  तो मैं  ज़ुदा  कहता

क़सम ले लो उन्हें  फिर भी न मैं बुरा कहता

 

वो जिसकी  ताब ने ज़र्रे  को आसमान किया  ( ओ बी ओ को समर्पित )

उसे न कहता तो फिर किसको मैं ख़ुदा कहता

 

रहम  दिली  पे  मुझे  खूब  है यकीं  उनकी

करूँ क्या ? वक़्त मिला  ही न  मुद्दआ  कहता 

 

तवील  है तो  सही  मेरी  दासतां , मैं  उसे

कभी  कभी  मिले  होते , ज़रा  ज़रा कहता

 

हरेक बात मैं  कहता  उन्हें, मगर  दिल  के

वो  पूछते  कभी  अरमाँ, छुपा  छुपा  कहता

 

नज़र  वो  आयें,  अगर मेरे  आस्ताने   में

तुम्हीं कहो ? कि इसे  क्या मैं हादसा कहता 

 

अभी  तो  ख़ुद से  मुलाक़ात  मेरी बाक़ी है

जवाब है नहीं हासिल मुझे , तो क्या कहता

******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment by khursheed khairadi on November 10, 2014 at 2:20pm

वो जिसकी  ताब ने ज़र्रे  को आसमान किया  ( ओ बी ओ को समर्पित )

उसे न कहता तो फिर किसको मैं ख़ुदा कहता

आदरणीय गिरिराज साहब खुबसूरत ग़ज़ल और लासानी अशहार हुये हैं |सादर अभिनन्दन 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 10, 2014 at 1:18pm

वाह ! सभी अशआर खूबसूरत हुए हैं, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बधाई आदरणीय भंडारी भाई साहब।

Comment by Shyam Narain Verma on November 10, 2014 at 12:33pm

बहुत खूब , गजल पर आपको दिल से बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 10, 2014 at 12:06pm

ओ बी ओ को समत्पित  i बहुत खूब  !  मित्र ओ बी ओ तो आप जैसे गुणी  को पाकर स्वयं धन्य  है i बहुत बेहतरीन गजल  i सादर i

कृपया ध्यान दे...

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