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उमेश कटारा ग़ज़ल --------चाँद ने मुस्कराकर जलाया बहुत

212 212 212 212
------------------------------------
एक किस्सा उसी ने बनाया मुझे
फिर तो पूरे शह़र ने ही गाया मुझे

बात आँखों से आँखों ने छेडी ज़रा
रात को छत पे उसने बुलाया मुझे

चाँद शामिल रहा फिर मुलाकात में
प्यार का गीत उसने सुनाया मुझे

रात चढ़ती गयी बात बढ़ती गयी
उसने बाहों में भरके सुलाया मुझे

मिल गये दिल, बदन से बदन मिल गये
पंछियों की चहक ने ज़गाया मुझे

सुब्ह होने से पहले दिखा आयना
खुद हक़ीक़त से मेरी मिलाया मुझे

किस तरह से हुयी है वो मजबूर अब
राज दिल का उसी ने बताया मुझे

रात पहली मिलन की हुयी आखिरी
और फिर आँसुओं से झुकाया मुझे

छोड़कर हाथ उसने ज़रा घूमकर

अपने सीने से रोकर लगाया मुझे

अश्क बहने लगे हो गया दूर वो
चाँद ने मुस्कराकर ज़लाया मुझे

अगले पल ही जुदा हो गयी जिन्दगी
वक्त ने कहर अपना दिखाया मुझे

आ गया हर तरफ एक तूफान सा
जिन्दगी ने बहुत ही सताया मुझे

मैं तो भूला नहीं हूँ उसे आज तक
क्या पता कैसे उसने भुलाया मुझे

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 778

Comment

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Comment by umesh katara on November 11, 2014 at 9:15am

शुक्रिया योगराज प्रभाकर जी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिये साधुबाद

Comment by umesh katara on November 11, 2014 at 9:14am

शु्क्रिया Mohinder kumar जी

Comment by umesh katara on November 11, 2014 at 9:14am

शुक्रिया डा.विजय शंकर जी

Comment by umesh katara on November 11, 2014 at 9:13am

आदरणीय गिरिराज जी आ.बागी जी बातों पर मैंने ध्यान दिया है.....आदरणीय बागी जी को और आपको साधुबाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 11, 2014 at 9:03am

आदरणीय उमेश भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकारें । आ. बागी जी की बातों का ख्याल ज़रूर करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 10:56pm

मैं तो भूला नहीं हूँ उसे आज तक
क्या पता कैसे उसने भुलाया मुझे
क्या बात है , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय उमेश कटारा जी , बधाई।

Comment by Mohinder Kumar on November 10, 2014 at 12:22pm

मिलन की खुशी और बिछोड के दर्द मेँ डूबी गजल के लिये बधाई  आदरणीये उमेश जी. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 10, 2014 at 11:29am

ग़ज़ल अच्छी हुई है जिस हेतु बधाई प्रेषित है आ० उमेश कटारा जी।  भाई गणेश बागी जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु उठाये थे, लेकिन आप शायद उन्हें नज़र-अंदाज़ कर गए।  मेरी राय में उनका संज्ञान लेना अति आवश्यक है।  एक गुज़ारिश और है कि आप प्रतिक्रिया भी देवनागरी में ही दिया करें।

Comment by umesh katara on November 9, 2014 at 5:26pm

shukriya Ramshiromani pathak ji

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:22pm

मैं तो भूला नहीं हूँ अभी तक उसे 
क्या पता कैसे उसने भुलाया मुझे////बहुत सुन्दर 

 हार्दिक बधाई आपको 

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