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मुझको फुर्सत में सताती है मेरी तनहाई...

बात करता हूं तो बातों में मेरी तनहाई
आंसुओं की तरह आंखों में मेरी तनहाई,

मेरी दहलीज पे जलते हुए चरागों को
आंधी बन करके बुझाती है मेरी तनहाई,

बेवफाई का गिला जब भी किया है मैंने
मुस्कराती है, रुलाती है मेरी तनहाई,

मेरे हिस्से के ये इतवार इन्हें तुम ले लो
मुझे फुर्सत में सताती है मेरी तनहाई,

जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई,

दुश्मनों ने तो हमें वार करके छोड दिया
दोस्ती रोज निभाती है मेरी तनहाई।।

जब भी हमको वो अकेले में देख ले 'मौसम'
भागती—दौडती आती है मेरी तनहाई।।

.

- मौलिक व अप्रकाशित
#(अतुल 'मौसम')

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Comment

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Comment by atul kushwah on November 1, 2014 at 6:08am
आदरणीय गिरिराज सर..लम्बे अरसे बाद आपका आशीष और स्नेह मिला .मन को अच्छा लगा..बहुत-बहुत आभार ..सादर-अतुल.

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 5:34am

जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई, ------------- लाजवाब  ग़ज़ल कही भाई अतुल जी , इस शे र के लिये विशेष बधाई स्वीकार करें ।

Comment by atul kushwah on October 30, 2014 at 9:16pm

आदरणीय भाई सा​रथी जी, स्नेह बख्शने के लिए तहेदिल से आभार। सादर— अतुल

Comment by Saarthi Baidyanath on October 30, 2014 at 9:07pm

आंसुओं की तरह आंखों में मेरी तनहाई, क्या गज़ब ! उम्दा है जनाब ...! बहुत बधाई 

Comment by atul kushwah on October 30, 2014 at 5:37pm

आदरणीय गोपाल नारायन सर, अबोध को अशीषने के लिए आभार। सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2014 at 3:04pm

जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई,

दुश्मनों ने तो हमें वार करके छोड दिया
दोस्ती रोज निभाती है मेरी तनहाई।।------------------------- सुन्दर रचना i

Comment by atul kushwah on October 29, 2014 at 5:53pm

आदरणीय विजय सर, आशीष बनाए रखिएगा। सादर—अतुल

Comment by atul kushwah on October 29, 2014 at 5:52pm

आदरणीय नरेन्द्र भाईजी, आपका बहुत—बहुत आभार। सादर—अतुल

Comment by vijay nikore on October 29, 2014 at 3:50pm

रचना अच्छी लगी। बधाई।

Comment by atul kushwah on October 28, 2014 at 5:13pm

आदरणीय सोमेश जी. प्रस्तुति पर समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद.हृदय से आभारी हूँ.. सादर

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