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"अतुकांत"
_________

गली के मोड़ पर जब दिखती

वो पागल लडकी

हंसती

मुस्कुराती

कुछ गाती सकुचाती,

फिर तेज कदमो

से चल

गुजर जाती

चलता रहा था क्रम

अभ्यास में उतर आई

उसकी अदाएं

हँसा गईं कई बार कई बार

सोचने पर

विवश

विधाता ने सब दिया

रूप नख-शिख

दिमाग दिया होता थोडा

और सहूर

जीवन के फर्ज निभाने का,

वय कम न थी

मगर आज...........

दिखी न वो हँसी

मोड़ तक आती वह गली

खामोश थी  |

दो कदम चल कर देखा,

भीड़ खडी थी और

सफ़ेद चादर से ढँका तन

खुला चेहरा

दहशत भरा

मुस्कुराना भूलकर |

( मौलिक अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Chhaya Shukla on September 27, 2014 at 9:34pm

आ. विजय निकोरे जी 
रचना की सुन्दर सराहना के लिए अतिशय आभार 
सादर नमन ! 

Comment by vijay nikore on September 27, 2014 at 1:49pm

अति सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति। बधाई।

Comment by Chhaya Shukla on September 27, 2014 at 1:05pm

बहन राजेश कुमारी जी , दिल से शुक्रिया प्रोत्साहन के लिए नमन ! 


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Comment by rajesh kumari on September 26, 2014 at 7:11pm

बहुत मार्मिक चलचित्र की भाँती आँखों के सामने से गुजरती अपनी छाप छोडती रचना ...बहुत- बहुत बधाई छाया शुक्ला जी .

Comment by Chhaya Shukla on September 26, 2014 at 11:39am

आ. जीतेन्द्र गीत जी अतिशय धन्यवाद ! 
सादर नमन ! 

Comment by Chhaya Shukla on September 26, 2014 at 11:38am

अतिशय आभार आ. राम शिरोमणि पाठक जी !

सादर नमन 

Comment by Chhaya Shukla on September 26, 2014 at 11:38am

आ. विजय मिश्र जी बहुत बहुत धन्यवाद सुंदर प्रतिक्रिया के लिए सादर नमन 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 25, 2014 at 10:31pm

bahut बहुत मर्मस्पर्शी रचना. बधाई आदरणीया छाया जी

Comment by विजय मिश्र on September 25, 2014 at 3:53pm
आ० छायाजी ,सशक्त ढंग से इस बेढंगे समाजिक कुसंस्कार को जो बलात हमें मुक्त और स्वछन्द जीवन से एक प्रछन्न भय की ओर ढकेल रहा है वाजिव शब्दों से उभारा है |रचना आदरयोग्य है ,साधुवाद |
Comment by Chhaya Shukla on September 24, 2014 at 9:56am

अतिशय धन्यवाद स्वीकारें बहन डॉ नूतन डिमरी गैरोल जी 
आपने सच कहा क्रूर पर सत्य सादर नमन ! 

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