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इक तरही ग़ज़ल --“तालाब सूख जाएगा बरगद की छाँवों में ( गिरिराज भंडारी )

तालाब  सूख जाएगा  बरगद  की छाँवों में

221      2121     1221     212

******************************************

अब  आग  आग है यहाँ  हर सू फ़ज़ाओं में

तुम  भी  जलोगे आ गये  जो मेरी राहों में

 

तिश्ना लबी  में  और  इजाफ़ा  करोगे  तुम

ऐसे ही झाँक झाँक के प्यासी घटाओं में

 

वो  शह्री  रास्ते  हैं  वहाँ  हादसे  हैं  आम

जो  चाहते  सकूँ हो, पलट  आओ  गाँवों में

 

तू  देख बस यही कि है मंजिल बहुत क़रीब 

तू  देख मत  अभी से कि छाले  हैं पांवों में

 

तू बस मिला नज़र, मेरे ज़ज्बात पढ़ के देख

किसको मिला क्या घूर के खाली खलाओं में

 

जब धूप सब सुखाये  , भला  कैसे ये कहूं

तालाब  सूख जाएगा  बरगद  की छाँवों में  

*******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2014 at 6:23pm

आदरणीय गुमनाम भाई , आपका बहुत शुक्रिया |

Comment by harivallabh sharma on September 21, 2014 at 1:39pm

बहुत सुन्दर...बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर लाजबाब...

जब धूप सब सुखाये  , भला  कैसे ये कहूं

तालाब  सूख जाएगा  बरगद  की छाँवों में  ...खूब कहा बधाई आदरणीय.

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 21, 2014 at 1:01pm

बेहतरीन गजल हुई है ,,,,,,,,,,,,,,हार्दिक बधाई स्वीकारें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2014 at 5:33pm

आ.बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिए दिली शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2014 at 5:32pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका दिली शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2014 at 5:32pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपकाई सराहना के लिए आपका दिली शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2014 at 5:31pm

आ. भुवन भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2014 at 5:30pm

आ. नीरज भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिए आपका आभार |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 2:53pm

वाह वाह मित्र

कभी कभी आप अचानक चौंका देते हो i बेहतरीन गजले हुई  हैं i सादर i  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2014 at 10:55am

अब  आग  आग है यहाँ  हर सू फ़ज़ाओं में

तुम  भी  जलोगे आ गये  जो मेरी राहों में

तिश्ना लबी  में  और  इजाफ़ा  करोगे  तुम

ऐसे ही झाँक झाँक के प्यासी घटाओं में

आदरणीय भाई गिरिराज जी यू ंतो पूरी गजल बेहतरीन है पर ये दो शेर अत्यधिक पसंद आए । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

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