For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनोखा ममत्व (लघुकथा)

आज पूरे दो वर्ष बाद बेटा घर आया था, माँ कि पथराई आँखों में जैसे खुशियों का शैलाब उमड़ पड़ा हो। रमेश अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। शादी होने के बाद पत्नी को लेकर शहर में ही रहने लगा था। घर पर पैसा बराबर भेजता रहता था, पर पैसो में वो आत्मसुख कहा जो अपने आँख के तारे के पास होने में है। दो दिन किसी तरह रहने के बाद ही वह वापस जाने की जिद करने लगा। नौकरी छोड़ के आया हूँ, बीबी अकेली है, छुट्टी कम ही मिली है, फिर जल्दी ही आ जाऊँगा, तमाम बहाने बनाने लगा। माँ बाप भी बेबस थें, बेचारे क्या करतें, साथ-साथ स्टेशन तक छोड़ने गयें। माँ की आँखों में अनवरत अश्रुधारा बह रही थी। ये सब देखकर रमेश बोला आपलोग ये क्या रोना-धोना लगा रखे हैं, अगली बार कभी आउँगा तो मुझे स्टेशन छोड़ने मत आइएगा, मुझे ये सब पसन्द नही। ट्रेन स्टेशन से जाने लगी, माँ अब भी टकटकी लगाकर देख रही थी, जैसे कलेजे का टुकड़ा निकला जा रहा हो, लेकिन रमेश को वो ममत्व कहाँ दिख रहा था जो माँ के दिल में एक बेटे के लिए तड़प रहा था, उसे तो ये भी याद नही था कि उन्होने अपना पेट काटकर, अपने हिस्से का निवाला खिलाकर उसे इतना बड़ा किया था। ट्रेन के स्टेशन से आगे बढते ही पत्नी को फोन किया ..... यार कितना बोरिंग रहा ये सफर, तुमको पुरे दो दिन मिस किया.........मन ही नही लग रहा था.........किसी तरह बहाना बनाकर आया हूँ .....बस कल सुबह ही पहुँच जाऊँगा।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 626

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pawan Kumar on September 8, 2014 at 3:52pm

""आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  सादर अभिवादन!  उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद"

Comment by Pawan Kumar on September 8, 2014 at 3:51pm

"आदरणीय जितेन्द्र जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! ""

Comment by Pawan Kumar on September 8, 2014 at 3:50pm

""आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी  सादर अभिवादन! उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार! "

Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 5:54pm

कितना सही है , अपना अपना ममत्व है । उसकी माँ को उसका था और उसे अपनी पत्नी का । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 7, 2014 at 11:53am

पवन जी

कथा का व्यंगार्थ मन को छूता है i 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 7, 2014 at 9:47am

बहुत ही बढ़िया विषय पर आपने लघुकथा साझा की है. न जाने क्यों एक बेटा विवाह के पश्चात अपने माता-पिता को दरकिनार करने लगता है, यह माता-पिता तो वही है जिन्होंने बेटे की खुशियों की खातिर अपना सब कुछ न्यौछाबर किया है. बधाई स्वीकारें आदरणीय पवन भाई

Comment by annapurna bajpai on September 6, 2014 at 6:02pm

वाह !! सच मे बहुत ही बढ़िया लघु कथा का सृजन हुआ है , बधाई आपको 

Comment by Pawan Kumar on September 5, 2014 at 5:06pm

"आदरणीय  महिमा जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! 

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2014 at 4:17pm

आज की कटु सचाई है ये बहुत ही अच्छे से लिखा बधाई आपको 

Comment by Pawan Kumar on September 5, 2014 at 2:48pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन .....
प्रयासरत रचना अच्छी लगी इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद....
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या है अपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले…"
14 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
33 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
45 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service