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दूर देश ब्याही बहिन, बाबुल हुआ उदासl

भाई लेने चल दिया, सावन आया पासll

----

बहना गहना डाल के, ले हाथों में थालl

भाई के घर आ गयी,तिलक मांडने भालll

----

हाथों में मंहदी लगा, बहना है तैयार l

बाबुल के अँगना बही, सुखद नेह की धार ll

----

भाई बहना मिल रहे, खुश माँ का संसार l

बाबुल के मन गिर रही, सावन की बौछार ll

----

कच्चे धागे में बंधा, भ्रात भगनि का प्यार l

अनुपम सकल जहान में, राखी का त्यौहार ll

----

राखी बंधन प्रेम का, होता है अनमोल l

देकर अपनी जान भी, चुका सका क्या मोलll

**हरि वल्लभ शर्मा दि.10.08.2014

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:52am

अच्छे दोहे हुए हैं आदरणीय हरि भाईजी. इस पावन पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएँ

दोहा शिल्प के मानकों पर निम्नलिखित पद का प्रथम चरण शब्द-संयोजन के कारण दोषपूर्ण है. 
बहना गहना पहन कर, ले हाथों में थालl

निम्नलिखित पद में टंकण दोष है. चुका गलती से चूका हो गया है -
देकर अपनी जान भी, चूका सका क्या मोलll

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 10, 2014 at 6:02pm

हरिवल्लभ जी

बहुत सुन्दर एवं  सामयिक दोहे i आपको बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2014 at 5:01pm

रक्षा बंधन पर बहुत सुन्दर दोहावली रची है आपने बहुत बहुत बधाई आ० हरिवल्लभ शर्मा जी सभी दोहे शानदार हैं 

हाथों में मंहदी लगा, बहना है तैयार l

बाबुल के अँगना पड़ी, बही नेह की धार ll---यहाँ विषम चरण में पड़ी शब्द नहीं जंच रहा है यदि ऐसे लिखें तो ---बाबुल के अँगना बही , सुखद नेह की धार ll

आपको इन शानदार दोहों के लिए हार्दिक बधाई एवं रक्षाबंधन की शुभकामनायें |

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2014 at 3:30pm
राखी बंधन प्रेम का, होता है अनमोल l
देकर अपनी जान भी, चुका सका क्या मोलll
बहुत सुन्दर आदरणीय हरी बल्लभ शर्मा जी , बधाई .

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