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मेघ निबह
श्याम श्वेत निर्मोही
भ्रम फैलाये
उड़ती घटा छाये
सूर्य आछन्न
दुविधा में फंसाए
काम बढाए
अकस्मात बरखा
बाहर डाले
कपड़े निकालते
फिर डालते
गृहलक्ष्मी दुचित्ता
क्रोध बढ़ाए
उलझौआ पयोद
वक्त कीमती
दुरुपयोग होता
वक्त भागता
सुना था कभी कही
खुद पे बीती
खीझ दुघडिया पे
भुनभुनाती
काम है निपटाने
प्रावृट् बदरा
तुझे सूझे नौटंकी
घुंघट ओढ़
हुई तू तो बावरी|
तंग गृहणी
मेघ निरंग निस्तारा
भ्रान्ति से छुटकारा| सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by savitamishra on August 5, 2014 at 8:05pm

मीणा sis हार्दिक शुक्रिया आपका

Comment by savitamishra on August 5, 2014 at 8:04pm

प्रावृट् बदरा...वर्षा ऋतू का बादल ....आदरणीय सौरभ भैया ......पढ़ा हमने बच्चों की डिक्शनरी में ...गलत हैं क्या

बधाई के लिय सादर आभार आपका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 7:00pm

इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें, आदरणीया ..

खीझ दुघडिया पे
भुनभुनाती
काम है निपटाने
प्रावृट् बदरा..   ये प्रावृट क्या होता है ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 5:33pm

आदरणीया , इस चोका रचना के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by Meena Pathak on August 5, 2014 at 5:19pm

बहुत सुन्दर चोका ...बधाई आप को 

Comment by savitamishra on August 4, 2014 at 10:36pm

रमेश भाई शुक्रिया आपका दिल से

Comment by savitamishra on August 4, 2014 at 10:36pm

प्रदीप चाचाजी सादर नमस्ते ...तहेदिल से शुक्रिया स्नेहमय कमेन्ट के लिय

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 4, 2014 at 4:56pm

सुंदर चोके,  बधाई

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 3:45pm

धूप छांव का खेल 

बदरा बेमेल काम बढ़ाये 

सादर बधाई आदरणीया जी 

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