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( ग़ज़ल )पर यहीं पर करार सा है कुछ -- गिरिराज भंडारी

2122    1212  22 /112  

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ

****************************

उजड़ा  उजड़ा दियार सा है कुछ

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ 

 

गर्मियाँ  खून  में  कहाँ  बाक़ी

गर्म हूँ , तो बुखार सा  है कुछ

 

खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर

बच गया फिर, उधार सा है कुछ

 

दिल को  बेताबियाँ नहीं  डसतीं

प्यार है, या कि प्यार सा है कुछ

 

फूल कलियों में  खूब  चर्चा  है

अब ख़िंज़ा मे उतार सा  है कुछ

 

टीस कहती है मुझ से रह रह के

कोई अपना  ही ख़ार सा  है कुछ

 

दोस्त,  संजीदगी  से   मत  लेना

बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on July 30, 2014 at 11:32pm

टीस कहती है मुझ से रह रह के

कोई अपना  ही ख़ार सा  है कुछ

अच्छा शेर है ...

Comment by नादिर ख़ान on July 30, 2014 at 11:04pm

हल्के फुल्के अंदाज़ मे पैनी बात करती खूबसूरत गज़ल ले लिए आदरणीय गिरिराज जी मुबारकबाद ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 7:12pm

आदरणीय गुमनाम भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 7:11pm

आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ही  मेरा संबल है , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से अभार ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 30, 2014 at 5:27pm

खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर

बच गया फिर, उधार सा है कुछ

आप   संजीदगी  से   मत  लेना

बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ

waah sir ji ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,khoob,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 4:23pm

टीस कहती है मुझ से रह रह के

कोई अपना  ही ख़ार सा  है कुछ----वाह्ह्ह्ह 

 

आप   संजीदगी  से   मत  लेना

बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ------ वाह कमाल सा है 

खूबसूरत मतले से लेकर आखिरी शेर तक कमाल .....बस ढेरों दाद कबूलिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 2:07pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार ||


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 2:06pm

आदरणीया कल्पना जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2014 at 2:03pm

मित्र

गजल पढा तो यह समझा

अभी भी  खुमार सा है कुछ   i  बधाई हो i

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 1:38pm

उजड़ा  उजड़ा दियार सा है कुछ

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ ................... बहुत सुंदर शब्द चयन । सर आप को बहुत बधाई /सादर 

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