अवनी अम्बर जीव चराचर
सुख पा सब हर्षाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
प्रियतम को आमंत्रित करने
मेघ दूत बन आये
नील गगन के मुख मंडल पर
श्वेत श्याम घन छाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
बहे पवन मदमस्त झूम के
पुरवा मन अलसाये
प्रेम मिलन संकेत सरित ने
अर्णव संग जताये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
छैला दिनकर आज धरा से
छिप छिप नैन लड़ाये
प्रेम जलज बिहँसे इस जग में
कभी न वह मुरझाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
-सत्यनारायण सिंह
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
परम आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार! आपके अनुमोदन ने रचना को सार्थकता प्रदान की है! बधाई एवं असीम शुभकामनाओं हेतु सादर धन्यवाद ! आदरणीय
वर्षा ऋतु के मनोहर रूप को आपने मनभावन ढंग से प्रस्तुत किया है, आदरणीय सत्यनारायणजी.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई और असीम शुभकामनाएँ.. .
आदरणीय डॉ. आशुतोष जी, आपके अनुमोदन ने रचना को सार्थकता प्रदान की है!
सादर धन्यवाद !
अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लडिवाला जी
आत्मीय अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे जी ,
आ. डॉ. गोपाल नारायन जी, आपके स्नेहिल भावों ने मन को आह्लादित किया है|
आशीर्वाद बनाए रखिए
अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशिल सरना जी
आदरणीय ..बेहतरीन शब्दों से सुसज्जित दिलो को छू लेने वाली शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
अवनी अम्बर जीव चराचर
सुख पा सब हर्षाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये---सुन्दर और भावपूर्ण गीत रचना हुई है | हार्दिक बधाई श्री सत्यनारायण सिंह जी
सत्य जी
आपने तो मन मोह लिया -
छैला दिनकर आज धरा से
छिप छिप नैन लड़ाये
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