मस्त वर्षा ऋतु निराली !
मस्त वर्षा ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा ।
भीगती है सृष्टि सारी, देख मन हो बाँवरा ।।
झूमता सावन लुभाता, शोर करती है हवा ।
मग्न होकर मोर नाचें, गीत गाते हैं लवा ।१।
आगमन वर्षा सुखद जग, तृप्त करती है धरा ।
मोदकारी शीत गुण से, ताप जगती का हरा ।।
गुदगुदाये देख यौवन, खिलखिलाये बचपना ।
वृद्ध रोपें बीज अनुभव, अंकुरित हो कल्पना ।२।
झूमते हैं आज द्रुमदल, गाँव में उत्सव मना ।
पुष्प सुन्दर नाचते हैं, हर नगर छाता तना ।।
देख आँखें सेंकते सब, दूरदर्शन मालिका ।
मार्ग हैं जलमग्न सारे, सुस्त लगती पालिका ।३।
-सत्यनारायण सिंह
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
परम आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम
आदरणीय प्रोत्साहनात्मक काव्य प्रतिक्रया हेतु आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर धन्यवाद .,,,,
है सरस, संतोषकारी छन्द रचना आपकी
अतिसहज पर भाव भारी छन्द रचना आपकी
सत्यनारायण बधाई आपको मेरी मिले
कामना है, पद्य-सर में शुभ्र-शतदल ही खिले
परम आदरणीय सौरभ जी सादर
पा बधाई आपकी फिर, आज मन हर्षित हुआ ।
लाभदायक मार्गदर्शन, ज्ञान भी वर्धित हुआ ।।
मार्गदर्शन संग यूँ ही, स्नेह भी मिलता रहे ।
ओ बि ओ की वाटिका में, मन सदा रमता रहे ।।
छंद भाया गीतिका यह, कर रहा मन साधना ।
दीजिये आशीष मुझको, पूर्ण हो मन कामना ।।
शब्द देसज और संस्कृत, मेल मन भाता नहीं ।
आपकी इस टिप्पणी ने, बात यह हमसे कही ।।
मस्त का पर्याय हमको, मुग्धकारी मिल गया ।
मुग्धकारी शब्द पाकर, अर्ध पद वह खिल गया ।।
स्पष्ट हो अब अर्थ शायद, भाव मैंने यूँ भरा ।
अनुगमन कर शीत ने फिर, ताप जगती का हरा ।।
सादर धन्यवाद
गीतिका छन्द पर इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय सत्यनारायणजी..
वैसे, शाब्दिक रूप से देसज और संस्कृत शब्दों का मेल कई बार अटपटा सा लगने लगता है.
दूसरे, मस्त वर्षा ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा .. में मस्त का प्रयोग खटकता है. ’मस्त’ एक चलताऊ सा शब्द है, आदरणीय. अलबत्ता, मुम्बई क्षेत्र यह शब्द बहुत प्रचलित है.
मस्त वर्षा के स्थान पर मुग्धकारी किया जा सकता है. यानि, मुग्धकारी ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा
मोदकारी शीत गुण से, ताप जगती का हरा .. इस पद का अर्थ बहुत स्पष्ट नहीं हुआ.
सादर
आदरणीय लडिवाला जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ
आदरणीय डॉ. आशुतोष जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ
गुदगुदाये देख यौवन, खिलखिलाये बचपना ।
वृद्ध रोपें बीज अनुभव, अंकुरित हो कल्पना ।२ - वाह ! बहुत सुन्दर भाव रचित सुंदर रचा के लिए हार्दिक बधाई श्री सत्य नारायण सिंह जी
आदरणीय ..वाकई इस रचना को पढ़कर तो आनंद आ गया ..सावन में आपने तो सभी को बारिश में भिगो दिया ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
सत्य जी
सुन्दर रचना i
आगमन वर्षा सुखद जग, तृप्त करती है धरा ।
मोदकारी शीत गुण से, ताप जगती का हरा ।।
गुदगुदाये देख यौवन, खिलखिलाये बचपना ।
वृद्ध रोपें बीज अनुभव, अंकुरित हो कल्पना ।२।
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