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गंगा के फ़ूल (लघु कथा) // --शुभ्रांशु पाण्डेय

छपाक्… ! 

मन्नू ने गंगा में कूद कर यात्रियों के चढ़ाये नारियल और फूल छान लिये. 

“अरे ये क्या किया.. जाने देते.. ”, एक यात्री डपटता हुआ चिल्लाया, “..फ़िर किसी और को बेच दोगे.. साले पूजा की चीजें भी नहीं छोडते हैं ये..” 
“जब पूजा करना तो बोलना.. वर्ना सरकार ने अब गंगा को गंदा करने वालों को जेल भेजना शुरु कर दिया है..”, एक तिरछी मुस्कान के साथ मन्नू ने आँख मारी. 

==========

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Shubhranshu Pandey on July 21, 2014 at 2:14pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

कथा पर विस्तृत विचार रखने के लिये घन्यवाद.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 21, 2014 at 2:06pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, कथा के पर अपने विचार रखने के लिये धन्यवाद.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 21, 2014 at 2:02pm

आदरणीया वेदिका जी.

आज सभी अपने आप् को अपडेट करते हैं मन्नु भी उसी में है. कथा पर विचार देने के लिये धन्यवाद्.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 21, 2014 at 2:01pm

आदरणीय संतलाल जी,

कथा पर समय देने के लिये धन्यवाद. 

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 21, 2014 at 12:53pm

कभी-कभी मन्नू जैसों के मुह लगने में बहुत बुरी मुहं की खानी पढ़ जाती है, मन्नू चाहे उस नारियल को बेचे या नही. अभी तो सरकारी निति उसके साथ है.  बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय शुभ्रांशु जी, बहुत-२ बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 21, 2014 at 11:37am

पहली  नज़र में ये एक समसामयिक लघु कथा लगी जो अपनी बात स्पष्ट करने में सक्षम है ,वो कहते हैं न सावन के अंधे को हरा हरा ही दीखता है ,,,,यहाँ ये कहावत  अच्छी तरह चरितार्थ हो रही है (अर्थात मन्नू सफाई कर रहा हैऔर लोग गलत अर्थ में ले रहे हैं  )  दूसरा भाव ---जो डॉ गोपाल जी ने कहा वो भी हो सकता है कि मन्नू सरकार की इस नीति का फायदा  उठाकर हाजिर जबाबी कर रहा है (उसके अंत में आँख मारने से प्रतीत हो रहा है ) दोनों ही भाव में लघु कथा एक सोच को जन्म देती है अब पाठकों पर निर्भर है जिस तरह लें पर कहानी ने अपनी छाप छोड़ दी है इसमें दो राय नहीं हैं ,आपको बहुत बहुत बधाई शुभ्रांशु जी | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 20, 2014 at 9:33pm

बहुत सुन्दर i

चोरी भी सीनाजोरी भी i

Comment by वेदिका on July 20, 2014 at 8:40pm
मन्नू का अपडेट होना बढ़िया लगा। और उस अपडेट का फायदा उठाना और भी बढ़िया।
बधाई आदरणीय शुभ्रांशु जी!
Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 8:07pm

आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी,

सामयिक चर्चा-परिचर्चा पर केन्द्रित प्रभावी लघुकथा, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

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