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समय ....

ये पल पल

गहराता कभी न

खत्म होने वाला

सन्नाटा

 

नहीं ....ये शान्ति नहीं है

चुप्पी भी नहीं है

न ....विराम है

ज़िन्दगी का

बहते समय का, गुज़रते दिनों का

 

फिर क्यूँ ये

ठहरा सा लगता है

जैसे

बांध के टांग दिया है

दीवार पर

इन बीतते दिनों को

शामों को, रातों को और

अलगे हर दिन को

 

कभी कभी

यूँ लगता है जैसे

कई सालों से यही है समय

यही था और इसी तरह रहेगा

शायद कुछ

खोया है इसका भी

या अपनी सुध खो

बैठा है....

 

क्या करू ?

कैसे जगाऊं इसे

थपथपी लगाऊं....गालों पर

इसका सर सहला दूँ या

पानी उड़ेल दूँ इसके चेहरे पर

चिकुटी काटूं हाथों पर या

पैरों में गुलगुला दूँ .....क्या करू

कैसे सुध में लाऊं

कैसे जगाऊं इसे

 

पड़ा तो ऐसे है

मानो फिर न उठाना हो

क्या कहूँ इसको

जो ये जागे...फिर

अपनी जात सा

तेज़ क़दमों संग भागे

तेरी चंचलता ही भाती है हमें

चल उठ चल ....बहुत हुआ

नियति तुझे बुलाती है

अब उठ चल .....

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

प्रियंका......

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Comment by Priyanka singh on July 10, 2014 at 2:47pm
आदरणीय सौरभ सर .... बहुत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया जान कर ....सराहना हेतु कोटि-कोटि धन्यवाद ....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2014 at 6:10pm

इस मंच पर आपकी पहली सार्थक रचना के लिए बधाई  .. . आपने और भी अच्छी रचनायें प्रस्तुत की हैं, परन्तु इस रचना ने मुझे आपके रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त किया है.

हार्दिक बधाइयाँ.

टंकण त्रुटियों के प्रति संवेदनशील रहें.

Comment by Priyanka singh on July 5, 2014 at 8:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया ब्रजेश सर ... 

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2014 at 7:25pm

बहुत सुन्दर रचना! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by Priyanka singh on July 5, 2014 at 5:26pm

आदरणीय विजय सर 

आपकी पसंदगी का बहुत बहुत आभार ....यूँही सराहते रहे .... आभार सर 

Comment by vijay nikore on July 3, 2014 at 4:20pm

आपकी रचना के खयालों में ताज़गी है, समय के प्रति कल्पना मनोहारी है। 

संवेद्नपूर्ण भावों की रसधारा से आप्लावित आपकी अति सुन्दर कविता मन को छू गई।

ढेर बधाई एवं सराहना के साथ।

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:54pm

शिज्जू सर ...बहुत बहुत शुक्रिया आपका ...सराहते रहे ...

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:54pm

जितेन्द्र जी ...रचना आपको पसंद आई अच्छा लगा ....बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:53pm

आदरणीय गोपाल सर .... रचना की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका .... 

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:50pm
मित्र मानव ....रचना की पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया ....

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