प्रेम स्पंदन ....
नयन आलिंगन.....
अपरिभाषित और अलौकिक.....
प्रेम स्पंदन//
मौन आवरण में ....
अधरों का अधरों से....
मधुर अभिनंदन//
महकें स्वप्न....
नेत्र विला में....
जैसे महके.....
हरदम चंदन//
मेघ वृष्टि की.....
अनुभूति को ....
कह पाये न....
प्रेम अगन में....
भीगा ये तन//
विछोह वेदना में....
नयन सागर के.....
तोड़ किनारे....
सुर्ख कपोलों पर दो बूंदें.....
पिया मिलन को .....
करती क्रन्दन//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
कुछ शब्द संयोजन का नवीन प्रयोग हुआ है, अच्छा लगा (इस पर विद्वजनों की टिपण्णी ही कुछ कहेगी)
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
खूबसूरत बिम्बों के प्रयोग से रचना सरस व सुन्दर बन पड़ी है बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत सुन्दर ..सादर बधाई आदरणीय
सरना जी/ नयन आलिंगन बिलकुल नया प्रयोग है i नेत्र विला भी चमत्कृत करता है i कविता वैसी हे है जैसी हम आपसे चाहते है i
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