For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल कैसे खिलें ? ( एक अतुकांत चिंतन ) गिरिर्राज भंडारी

फूल कैसे खिलें ?  ( एक अतुकांत चिंतन )

***************

प्रेम विहीन हाथ मिले तो ज़रूर

मुर्दों की तरह , यंत्रवत

तो भी खुश हैं हम

शायद अज्ञानता और बेहोशी भी खुशी देती है ,एक प्रकार की

झूठी ही सही

और झूठी इसलिये

क्यों कि बेहोशी का सुख हो या दुख , झूठा ही होता है

 

इसलिये भी, क्योंकि

हम स्वयँ जीते ही कहाँ है

जीती तो है एक भीड़ हमारी जगह ,

भीड़ विचारों की , तर्कों – कुतर्कों की

भीड़ शंकाओं- कुशंकाओं की , डर की

भीड़ इच्छाओं – अनिच्छाओं की,

भीड़ जिसका विवेक नही होता ,

 

भीड़ कभी मरती नहीं

शक्लें बदल लेतीं हैं और जीती रहती हैं , हमेशा  

इसीलिये हम स्वयँ कभी जी ही नही पाते

भीड़ ही जीती है हर समय , हर पल हमारी जगह

भीड- मरे तब तो स्वयँ जियें न !

 

स्वयँ जीते तो पता लग ही जाता

हाथ ही मिले थे , निर्जीव

प्रेम तो बहा ही नही , न इधर से उधर .न ही उधर से इधर

फिर फूल कैसे खिलें ?

प्रेमाश्रु कैसे बहें?

ह्रदय कैसे मिलें ?

निर्जीव हाथों के मिलने से

*************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 741

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 3, 2014 at 6:58pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी, चिंतन के इस बुलावे ने मेरे उद्देश्य की पूर्ति कर दी आदरणीय , अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by vijay nikore on July 2, 2014 at 11:25am

//भीड़ विचारों की , तर्कों – कुतर्कों की

भीड़ शंकाओं- कुशंकाओं की , डर की

भीड़ इच्छाओं – अनिच्छाओं की,

भीड़ जिसका विवेक नही होता //

इस अति प्रभावमय रचना के लिए साधुवाद, आदरणीय गिरिराज जी।  कविता के भाव चिंतन के लिए बुलाते  हैं।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:36pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी सराहना मेरे लिये तमगे से कम नही है , आपके स्नेह सिक्त सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:19pm

आदरणीया राजेश जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:18pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:17pm

आ. विजय प्रकाश भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:17pm

आदरणीय बृजेश भाई , रचना के आपका अनुमोदन मिलना मेरे लिये बड़ी खुशी की बात है , आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2014 at 11:37am

मित्र  अतीव सुन्दर

प्रारंभ से अंत तक कविता बांधे रहती है i  विलक्षण  i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2014 at 11:01am

ये एक स्वप्न के सामान है आँख खुली और टूट गया बेहोशी का सुख भी यही है ...इस पहलु को बड़ी ख़ूबसूरती से छुआ है आपने इस अभिव्यक्ति में ,बहुत खूब ,बधाई आपको आ० गिर्रिराज जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 9:40am

सच कहा आपने अबोधता या बेहोशी में पाया गया सुख इंसान को बहुत अच्छा लगता है लेकिन शायद हम उसे सुख नही कह सकते. आपकी अनुभवी लेखनी को नमन आदरणीय गिरिराज जी, हार्दिक बधाई स्व्वीकर करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
27 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
46 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service