For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है ( गिरिराज भंडारी )

1222      1222      122

कोई खामोश, मेरा हम ज़बाँ है

बड़ी चुप सी ,मेरी हर दास्ताँ है

 

कोई अब साथ आये या न आये

अकेलेपन से मेरा कारवाँ है

 

कहीं है आदमी में उस्तवारी    

कहीं हर शख़्स लगता नातवाँ है 

 

ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक

तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है

 

यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती

यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है

 

दिया बाती कहीं से खोज लाओ

उजाला चंद पल का मेहमाँ है

 

ज़मी से दूब सा रिश्ता हमारा

हुआ क्या? अब ज़मीं से आसमाँ है 

 

तेरी यादों की ठंडक से लगा यूँ

कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है 

*********************************** 

उस्तवारी = मज़बूती , नातवाँ = कमज़ोर , जाविदाँ = अमर

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:06pm

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:05pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई , आपको कुछ अशाअर पसंद आये , गज़ल कहना सफल हो गया । आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:04pm

आदरणीया गीतिका की , सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:03pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 22, 2014 at 12:06pm

मित्र

बहुत सुन्दर गजल  i लाजवाब  मक्ता i  बहुत बहुत बधाई i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 9:52am

कोई अब साथ आये या न आये

अकेलेपन से मेरा कारवाँ है.............सच ही तो है, कहाँ..? कब..? किस पर...? पर यकीं किया जाय

 

यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती

यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है...........यही यथार्थ है

 

दिया बाती कहीं से खोज लाओ

उजाला चंद पल का मेहमाँ है.........पंछी भी पुराना पेड़ छोड़ जाते है

गजल में भाव बहुत ही सुन्दरता से उभर कर आये है, यह आपकी अनुभवी लेखनी का कमाल है. ह्रदय से बधाइयाँ आपको आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 22, 2014 at 9:41am

वाह क्या बात है आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 9:35am
बहुत सुन्दर रचना , आ o गिरिराज जी ,
Comment by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 7:17am
वाह वाह हर शेर भाव के सागर से निकला मोती सदृश ...
ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक

तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है
लाजवाब , हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए आदरणीय श्री गिरिराज जी !!
Comment by वेदिका on June 22, 2014 at 2:36am
दिया बाती कहीं से खोज लाओ
उजाला चंद पल का मेहमाँ है ..... लाजवाब शेर

खूबसूरत गजल
शुभकामनाये आ0 गिरिराज जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service