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ग़ज़ल - कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है ( गिरिराज भंडारी )

1222      1222      122

कोई खामोश, मेरा हम ज़बाँ है

बड़ी चुप सी ,मेरी हर दास्ताँ है

 

कोई अब साथ आये या न आये

अकेलेपन से मेरा कारवाँ है

 

कहीं है आदमी में उस्तवारी    

कहीं हर शख़्स लगता नातवाँ है 

 

ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक

तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है

 

यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती

यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है

 

दिया बाती कहीं से खोज लाओ

उजाला चंद पल का मेहमाँ है

 

ज़मी से दूब सा रिश्ता हमारा

हुआ क्या? अब ज़मीं से आसमाँ है 

 

तेरी यादों की ठंडक से लगा यूँ

कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है 

*********************************** 

उस्तवारी = मज़बूती , नातवाँ = कमज़ोर , जाविदाँ = अमर

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:06pm

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:05pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई , आपको कुछ अशाअर पसंद आये , गज़ल कहना सफल हो गया । आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:04pm

आदरणीया गीतिका की , सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:03pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 22, 2014 at 12:06pm

मित्र

बहुत सुन्दर गजल  i लाजवाब  मक्ता i  बहुत बहुत बधाई i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 9:52am

कोई अब साथ आये या न आये

अकेलेपन से मेरा कारवाँ है.............सच ही तो है, कहाँ..? कब..? किस पर...? पर यकीं किया जाय

 

यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती

यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है...........यही यथार्थ है

 

दिया बाती कहीं से खोज लाओ

उजाला चंद पल का मेहमाँ है.........पंछी भी पुराना पेड़ छोड़ जाते है

गजल में भाव बहुत ही सुन्दरता से उभर कर आये है, यह आपकी अनुभवी लेखनी का कमाल है. ह्रदय से बधाइयाँ आपको आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 22, 2014 at 9:41am

वाह क्या बात है आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 9:35am
बहुत सुन्दर रचना , आ o गिरिराज जी ,
Comment by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 7:17am
वाह वाह हर शेर भाव के सागर से निकला मोती सदृश ...
ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक

तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है
लाजवाब , हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए आदरणीय श्री गिरिराज जी !!
Comment by वेदिका on June 22, 2014 at 2:36am
दिया बाती कहीं से खोज लाओ
उजाला चंद पल का मेहमाँ है ..... लाजवाब शेर

खूबसूरत गजल
शुभकामनाये आ0 गिरिराज जी!

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