For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में  है टीम...”

“अरे हाँ यार!   तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”

“ आने दे यार!  वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख  मैच”

 

              जितेन्द्र ’गीत’

      ( मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 897

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:16pm

बहुत सजीव शब्द चित्र उकेरा है

शिल्प पर कसी, सुगठित, संवेदनाओं को  झकझोरती इस सार्थक लघुकथा पर हार्दिक बधाई आ० जितेन्द्र जी 

 

Comment by Ravi Prabhakar on June 25, 2014 at 3:07pm

प्रिय मित्र,
    लघुकथा उस क्षण का कलात्मक चित्रण है जिसमें जीवन के गहन अर्थ छिपे हों। साधारण में से असाधारण ढूंढना और उसका चित्रण करना ही लघुकथा की विशेषता है। लघुकथा में अस्पष्टता, धुन्दलेपन, विस्तार और विशलेषण का कोई स्थान नहीं होता। वह लघुकथा ही सफल मानी जाती है जिसमें शब्दों को बढ़ाना या घटाना संभव न हो। आपकी प्रस्तुत लघुकथा की विशेषता इसका कसा हुआ शिल्प, एक ही क्षण की प्रस्तुति व अनावश्यक विवरण ना होना है। बहुत दिनों बाद ऐसी लघुकथा पढ़ कर आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई। बेशक इस विषय पर मेरा ज्ञान बहुत ही अल्प है इसलिए मैं किसी की रचना पर टिप्पणी करने का दुस्साहस नहीं करता। कुछ ज्यादा कह दिया हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। भविष्य में आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 8:40am

आदरणीया कल्पना रमानी जी, जब संतान ही ऐसा बर्ताब करे या अपने पालकों के प्रति असंवेदनशील हो तो दुसरे रिश्तों के प्रति क्या विश्वाश किया जाएगा..? आपकी उपस्थिति हमेशा रचना के लिए आशीर्वाद स्वरूप होती है जिसे कम न होने दीजियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 8:36am

आदरणीया महिमा जी, आपकी उपस्थिति से लेखन को मनोबल मिला व् मन को ख़ुशी मिली . आज के सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में संवेदनाओं को केवल स्वार्थ देखकर ही उपयोग में लाया जाता है, सच में यह एक कटु सत्य  ही है जब तक किसी से सुख मिले तब तक ठीक वरना कौन किस पर अपनी स्वतंत्रता या सुखों को न्यौछावर करता है. रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 8:27am

आदरणीय विजय मिश्र जी, आप बिलकुल सही कह रहे है जिन्दगी जुआ ही तो है . जीते तो और जीत का लालच, हार जाय तो जीत के लिए सब दाव पर लगा देना. आपके स्नेह हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 8:23am

आपका कहना सही है आदरणीय विजय निकोर जी, किन्तु ऐसी असंवेदनशीलता मैंने अधिकतर स्वार्थ के रूप में ज्यादा देखी है. रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 8:19am

आपकी सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शुभ्रांशु जी, आपके स्नेहिल मार्गदर्शन का हमेशा इन्तजार रहता है. यूहीं स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:46pm

संतान की  संवेदन हीनता का मार्मिक चित्रण किया है, आदरणीय जितेंद्र जी, बधाई आपको

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 7:25pm

बहुत ही मार्मिक .. कटु सत्य ... आज के सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में  फैले  संवेदनहीनता को बहुत ही करीने से प्रस्तुती हुयी है .. हार्दिक बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on June 19, 2014 at 5:36pm
हाँ भाई ,जिंदगी का जुआ जो पटक दे ,वो यूँही दूसरों की हार-जीत में खुद को भटकाता रहता है |धरती के कोढ़ कुपूत होते हैं ये |बहुत सुंदर आशय दिया जितेन्द्रजी , बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service