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मन की...

तपती धरा पर

कुछ  बूंदें  ही बारिश की

यूँ पड़ी..

न कोई राहत ,न ही सौंधी सी महक

सिर्फ बेचैनी और उमस

कहीं संवेदनाओं की मिट्टी

पत्थर तो नहीं हो गई

 

या वर्ष भर के

लम्बे विरह से

मिलन की ,भूख-प्यास चाहती हो

खूब टूट-टूट कर 

बरसें   ये बादल

हाँ..! यही सच है

शायद..

मन भी यही चाहता है.

जितेन्द्र’गीत’

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 10, 2014 at 9:31am

आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है आदरणीया डा.प्राची जी, आपकी उपस्थिति बहुत मनोबल प्रदान करती है, आपका ह्रदय से आभार.

सादर!


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Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 4:50pm

प्राकृतिक बिम्बों के माध्यम से मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई आ० जितेन्द्र जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2014 at 9:22am

रचना पर आपकी उपस्थति से बहुत मनोबल मिलता है आदरणीय सौरभ जी, आपका ह्रदय से आभार

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 4:21am

बहुत ही सफल प्रयास हुआ है, भाई जितेन्द्र जी.

शुभ-शुभ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 9:53pm

रचना पर आपके अनुमोदन से रचना सार्थक हुई आदरणीय विजय जी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 3:32pm

आपके भाव पन्ने पर अच्छे उतरे हैं। भावप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 10:20am

आपकी उत्साहवर्धक सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:20am

........इस भावप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई आ0 भाई जितेन्द्र जी ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 11:27pm

रचना पर आपकी उपस्थिति से मन को बहुत संतोष मिलता है आदरणीय बृजेश जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 11:14pm
सुन्दर रचना। आपको बधाई।

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