For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

.जिंदगी तुझे ही पढ़ लेते हैं ---डा० विजय शंकर

चलो किताबों को बंद कर देते हैं
जिंदगी तुझे ही सीधे-सीधे पढ़ लेते हैं .
किताबों में सबकुझ तेरे बारे में ही तो है
लो , तुझसे ही सीधे-सीधे बात कर लेते हैं.
किताबें तो बहुत सी हैं , मिल भी जायेंगीं
उन को पढ़ लूँ तो क्या तू मिल जायेगी .
मौत को कितने और कौन-कौन पढ़ते हैं
पर उसका वादा है , सबको मिलती है .
भरोसा नहीं , तू किसको मिले , कितनी मिले
तेरे लिये , तेरे चाहने वाले दिन रात लगे रहते हैं .
अरे सब कुछ तो तेरे लिए ही है जिंदगी में
तू है तो सब है , तू नहीं तो क्या है जिंदगी में .
इसलिए चलो किताबों को बंद कर देते हैं .
तू है , तुझसे सीधे-सीधे बात कर लेते हैं .
..डा० विजय शंकर---------------
( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 802

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 9:54pm
प्रिय जिद जी ,
पढ़ते तो वास्तव में हम ज्ञान के लिए है. सीमित और बहुत सीमित ज्ञान के लिए . जब कि दुनिया में कितना अज्ञान भरा है. एक बार अज्ञान के व्योम मंडल में नजर उठा कर देखे . असीम आनंद प्राप्त होता है , जैसे फिर से बचपन लौट आया , सारे कौतूहल वापस ले आया . तब पता चलता है ज्ञान क्या है , जितना भी है कितना सीमित है . .... आपने जो लिखा , अच्छा लगा . धन्यवाद .
सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 9:37pm
Dr. Gopal Narrain Srivastav ji, bahut bahut dhanyvaad .
Comment by Zid on June 11, 2014 at 8:16pm

विजयजी ,
पढ़ पढ़ कर जो बात समाज न आये वैसेही पढ़ लेते है
क्या सीधी क्या उलटी ज़िद सबकी है सब इसी दायरेमें रहते है

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2014 at 7:23pm

विजय जी

मै आपके हौसले की दाद  देता हूँ  i  आमीन i

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 4:51pm
Thanks Jitendra Geet ji, for such a lovely comment .
Thanks Abhinav Arun ji for such a compliment .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2014 at 11:42am

सच ही तो है, पढ़कर भी अनुकरण किसने किया है. अनुभव ही काम आता है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Abhinav Arun on June 11, 2014 at 11:03am
सुन्दर भावाभिव्यक्ति डॉ साहिब ! बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
23 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service