For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बात जब भी शहर में -- ..डा० विजय शंकर

बात जब भी शहर में
अंधेरा मिटाने की होती है ,
तेरे घर की रौशनी कुछ
और बढ़ा दी जाती है |
बात जब भी मजबूर
सताये लोगो को
न्याय दिलाने की होती है
तुझे एक नयी जमानत
और दिला दी जाती है |्
तेरे हर जुल्म हर गुनाह के साथ ,
तेरी शोहरत बढ़ाई जाती है ,
तेरे सताये गुमनाम अंधेरों में ,
सिमट जाते हैं , और
चकाचौंध रौशनी कर तेरे
चेहरे की रौनक बढ़ाई जाती है |
तेरी मौज , तेरी तफरीह में जो
मिट गये , उन्हें कफन भी नहीं मिला ,
तेरे नाम पर मंदिरों में चढ़ावे और
दरगाहों पर चादरें चढ़ाई जाती हैं |
बात जब भी कमजोरों के
हाथ मजबूत करने की होती है ,
तेरी पकड उन पर और
मजबूत बनाई जाती है |
बात जब भी शहर में
अंधेरा मिटाने की होती है ....

डा० विजय शंकर

( मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2014 at 5:52pm
आपको रचना पसंद आई , धन्यवाद , आदरणीय विजय निकोर जी ।
Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 1:38pm

बहुत ही अच्छी रचना है। बधाई आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 2:48am
आदरणीय सौरभ पण्डे जी ,
बात जब भी शहर में रचना पसंद आई , धन्यवाद .
इसी रचना के साथ मैंने ओ बी ओ के मंच में प्रवेश लिया था .
सादर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 18, 2014 at 2:18am

सद्यः समाप्त आयोजन में आपको पढ़-सुन चुका हूँ अब. वैसे यह प्रस्तुति काव्य-महोत्सव के प्रारम्भ होने के पूर्व की है.

एक अच्छे सहानुभूतिपूर्ण विचार को सार्थक शब्द मिले हैं.  इस प्रस्तुति को साझा करने के लिए हृदय से धन्यवाद, आदरणीय

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 8:12pm
ह्रदय से आभार , प्रिय गिरिराज जी , पंक्तियों को सम्मान देने के लिए .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 5:50pm

आदरणीय विजय भाई , समज के दो वर्गों के द्वंद को सुन्दरता से बयान किया है , आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 5:01pm
Thank you very much Dr. Prachi Singh ji for all your nice words and appreciation and welcoming me on the forum . Regards .
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 4:57pm
Thanks Narendra Chauhan ji for your nice comment .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2014 at 12:27pm

बहुत सुंदर, प्रभाव डालती रचना आदरणीय डा.विजय जी. आपको बहुत बहुत बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 11, 2014 at 10:03am

आ० डॉ० विजय शंकर जी 

मंच पर आपका स्वागत है...

आपकी पहली प्रस्तुति से गुज़ारना अच्छा लगा ..इस प्रस्तुति में ग़ज़ल सी रवानगी है

समाज की दोरंगी तस्वीर में रंगों के बढ़ते फासले पर आपने बहुत गहन सोच को प्रस्तुत किया है.

मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service