For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर किया है कत्ल उसने इश्तिहार है

शुक्र है वो हर गुनाह का जानकार है

कत्ल वो हथियार से करता नहीं कभी

कत्ल करने की अदा कजरे की धार है

अब वफादारी निभाता कौन है यहाँ

अब मुहब्बत हो गयी नौकाबिहार है

आजकल लगने लगा हैं वो कुछ नया नया

फिर हुआ शायद कोई उसका शिकार है

झूठ भारी हो गया सच के मुकाबले

आजकल सच हारता क्यों बार बार है

मार डालें ना मुझे बेचैनियाँ मेरी

दिल मेरा ये सोचकर अब सौगंवार है

सिर्फ अश्कों की नमी है मेरे शह्र में

अब यहाँ होती है वारिस कब कभार है

मूँद लूँ आँखें तेरा दीदार हो जरा

दिल मुद्दतों देखने को बेकरार है

तो चले अन्तिम सफर आगे उमेश का 

मुस्करादेें वो जरा ये इन्तजार है

उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 23, 2014 at 2:14am

जनाब

आपकी बताई बह्र के अनुसार कुछ मिसरे खारिज हो रहे हैं
नज़रे सानी फरमा लें

Comment by umesh katara on June 21, 2014 at 10:51pm

शुक्रिया राजेश कुमारी जी मैं ही गलत समझ बैठा था आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी क्षमा चाहुंगा..........मेरी गजल की बह्र 2122 2122 2121 2


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2014 at 9:23pm

आ० उमेश कटारा जी,आपकी ग़ज़ल वाकई खूब सूरत है उसमे कोई शक नहीं किन्तु जैसा कि आ० सौरभ जी ने कहा वो भी सही है यदि आप ऊपर बहर या वज्न  लिख देते तो आपकी इस ग़ज़ल को मैं बहुत पहले पढ़ लेती और मेरी तरह अन्य पाठक भी,ऐसा करने से पाठकों को समीक्षा करने में सहूलियत होती है ,जैसा की आ० सौरभ जी ने कहा इसका वज्न २१२२   २१२२  २१२१२  ही लग रहा है और यदि यह वज्न है तो कृपया ये मिसरा दुबारा जांच लें ---आजकल लगने लगा हैं वो कुछ नया नया

दूसरा इस मिसरे में भी संशय है ---

दिल मुद्दतों देखने को बेकरार है----दिल मुद्दतों में मात्राएँ २२१२  होती है जो आपने २१२२ में फिट की है

बाकि सभी अशआर इस बहर पर कसे हैं बहुत सुन्दर बने हैं दिली दाद कबूलें सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2014 at 8:48pm

आदरणीय उमेशजी, मैंने कब कहा कि आपकी ग़ज़ल पूरी तरह बेबह्र है ?

मेरा आशय था कि यह मंच सीखने-सिखाने का मंच है. यहाँ कई सदस्य प्रस्तुत हुई ग़ज़लों को पढ़ कर ग़ज़ल कहना सीखते रहते हैं. अतः इस मंच की परिपाटी-सी है कि ग़ज़ल प्रस्तुत करने के साथ ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल के मिसरों के वज़्न दे दिया करते हैं. ताकि जिनको ग़ज़लों की बह्र समझने में परेशानी हो वे ग़ज़लकार द्वारा दिये गये वज़्न को देख कर समझ लें.

आपकी ग़ज़ल के मिसरे यदि मैं गलत नहीं हूँ तो निम्नलिखित है -
२१२  २२१२   २२१२   १२
यदि गलत हो तो सुधार दीजियेगा.
यदि वज़्न आपने दे दिया होता तो कई सीखते हुए सदस्य इस ग़ज़ल का लाभ उठाते.

संभवतः मैं अपनी बातें स्पष्ट कर पाया.
सादर

Comment by umesh katara on June 21, 2014 at 5:38pm

आदरणीय Saurabh pandey ji सभी मिसरे बज्न में है कृपया आप समीक्षा दें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 8:28am

आदरणीय उमेश कटाराजी, आपने मिसरों का वज़्न दिया होता तो कइयों लभ हुआ होता, तदनुरूप टिप्पणियाँ भी आतीं.

Comment by umesh katara on June 19, 2014 at 8:13am

शुक्रिया विजय मिश्र जी 

Comment by विजय मिश्र on June 16, 2014 at 5:53pm

"कत्ल वो हथियार से करता नहीं कभी
कत्ल करने की अदा कजरे की धार है
अब वफादारी निभाता कौन है यहाँ
अब मुहब्बत हो गयी नौकाबिहार है
आजकल लगने लगा हैं वो कुछ नया नया
फिर हुआ शायद कोई उसका शिकार है |"

- जबरदस्त कटार चलाया है ,कटारा भाई,आपने |बधाई हो |

Comment by umesh katara on June 12, 2014 at 7:27pm

शुक्रिया Laxman dhami ji

Comment by umesh katara on June 12, 2014 at 7:26pm

शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service