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हम सभी सोचें कि अपने निजि स्तर पर हम क्या कर सकते हैं। कोई भी दिन ऐसा न जाए कि जब हम इस दिशा में सार्थक सोच न कर पाएँ, या पर्यावरण के लिए कोई विशेष कदम न उठाएँ। क्या कर सकते हैं ?.. यह हमें अपने दैनिक
अनुभवों में देखना होगा, कि कब, कहाँ, कौन से परिवर्तन ला सकते हैं।
पर्यावरण पर आपका बहुत ही सार्थक आलेख अच्छा लगा। हार्दिक बधाई।
तथ्य जितना गहन है, कथ्य उतना ही सरस. संप्रेषण अत्यंत प्रवहमान.
आदरणीय विजयजी, आपने विन्दुओं को सार्थक ढंग से प्रस्तुत किया है.
हर सदस्य-पाठक के लिए अवश्य पठनीय इस प्रस्तुति हेतु सादर आभार.
आ० विजय मिश्र जी
पञ्च तत्वों से ही ये प्रकृति निर्मित है और इन्ही से ये मनुष्य...इनका सामंजस्य और संतुलन हर स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण है.... आधुनिक जीवनशैली में जिस तरह हमने स्वयं को प्रकृति से न केवल अलग, अपितु उसका शासक ही मान लिया है और हर संसाधन का अन्धाधुन्ध दोहन करते जा रहे हैं..बिना इस नाज़ुक पारिस्थितिकीय संतुलन के बारे में सोचे...ये सचमे हमें उसी कगार पर ले पहुंचे हैं कि हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काटते जा रहे हैं....
आपने बहुत ही सार्थक आलेख प्रस्तुत किया है. हृदय तल से बधाई प्रेषित है .
टंकण त्रुटियाँ कई जगह रह गयी हैं..एक बार पुनः पूरे आलेख को देख जाएं और उन्हें अवश्य ही सुधार लें.
पर्यावरण पर बहुत ही ज्ञान वर्धक लेख लिखा आपने ऐसे आलेखों की आज बहुत जरूरत है बहुत -बहुत बधाई आपको.
आदरणीय विजय जी ...जागरूक करने वाला , आँखे खोलकर सचेत करने वाला शानदार लेख ..आपने इतनी ज्ञानवर्धक जानकारी हमारे साथ साझा की इसके लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर
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