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ग़ज़ल - - दर्द मै अपना दबा भी लूँ - ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122      2

दिन टपक के सूख जाता है

हाथ में कुछ भी न आता है

 

मै पराया , वो पराया है

कौन किसमें अब समाता है ?

 

ग़म हक़ीक़ी भी मजाज़ी भी

देख किसको कौन भाता है  

 

दर्द मै अपना दबा भी लूँ

ग़म तुम्हारा पर रुलाता है

 

खार चुभते जो रिसा था ख़ूँ

रास्ता वो अब दिखाता है

 

सूर्य तो ख़ुद जल रहा यारों

वो किसी को कब जलाता है

 

ख़्वाबों में आ आ के शिद्दत से

गाँव तो अब भी बुलाता है

 

तू न अब मायूसियाँ ही देख 

देख कोई मुस्कुराता है  

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 11:07am

आदरणीय शिज्जू भाई , हौसला अफज़ाई का आपको तहे दिल से  शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 4, 2014 at 10:01am

बहुत बढ़िया आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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