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आये अज़ल जिस गोद में ……

आये अजल जिस गोद में  ……

कितने निर्दयी हो तुम
दबे पाँव आते हो
मेरे खामोश लम्हों को
अपनी यादों से झंकृत कर जाते हो
झील की लहरों पे चाँद
लहर लहर मुस्कुराता है
मेरी बेबसी को गुनगुनाता है
सबा मेरे गेसुओं से लिपट
मेरी ख़्वाहिशों को बार बार ज़िंदा कर जाती है
तुम्हारे मुहब्बत में डूबे लम्स
मेरे लबों पे कसमसाते हैं
मगर तड़प के इन अहसासों को तुम न समझोगे
तुम क्यों नहीं समझते
मेरे तमाम मौसम तुम से शुरू होते हैं
और तुम पे ही फ़ना होते हैं
मेरी तन्हाई की हर करवट में
तुम मेरे साथ सोते हो
हर सलवट में तुम्हारी महक होती है
सिहिर जाती हूँ जब भी बादे सबा मुझे छूती है
क्या मेरी दर्द भरी सदा सुनकर भी न आओगे
मेरी प्यास तुम्हारे इंतज़ार में
मेरे इंतज़ार को अपनी यादों की मैखों का दर्द न दो
आओ और मेरे लम्हों को अपने वज़ूद का तआरुफ़ दे दो
मेरे अक्स को अपना अक्स दे दो
आये अजल जिस गोद में
वो मुहब्बत भरा इक फ़र्द दे दो


लम्स=स्पर्श , सदा=आवाज़ ,मैखों=कीलें ,बादे सबा =सुबह की हवा ,फ़र्द =शख़्श,अजल =मौत

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 6:29pm

आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी आपकी इस आत्मीय प्रशंसा ने रचना को जो मान सम्मान दिया है उसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 5:47pm

आदरणीय शुशील जी ..प्रेम की सुखद अनुभूति का अहसास , सुंदर प्रतीकों के माध्यम से प्रेम को महसूस कराती ..कही शिकवा ..कहीं ख्वाइश को दर्शाती , बेहतरीन शब्दों के आभूषण से भावों को सुसज्जित करती शानदार रचना के लिए मेरी तरफ से ढेरों बधाई कबूल करें सादर 

Comment by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 12:58pm

परम आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी चरण रज तो मैं आपकी लूँगा जिन्होंने इस नाचीज़ को इतना मान दिया जिसके शायद मैं काबिल नहीं।  आप जैसे गुणीजनों के आशीर्वाद से ही नए सृजन की शक्ति मिलती है।  आपकी इस ऊर्जावान आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 12:53pm

आदरणीय विंदू बाबू जी आपकी स्नेहिल सराहना का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 12:52pm

आदरणीय कुंती मुखर्जी  आपकी स्नेहिल सराहना  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 12:51pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 30, 2014 at 12:17pm

सरना जी

कहाँ है आपके चरना जी

छु लू उन्हें

इतनी सुन्दर अभ्व्यक्ति के लिए

Comment by Vindu Babu on May 29, 2014 at 7:41pm

कुछ नये शब्दों से अवगत कराया आपने इसके लिए आभार आपका और हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति के लिए।

सादर

Comment by coontee mukerji on May 29, 2014 at 7:22pm

सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on May 29, 2014 at 4:51pm
बहुत  ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई 

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